Monday, March 3, 2025

सवितृःगायत्री

सवितृःगायत्री गायत्री मूलतः वेदों का छंद है। ८-८-८ अक्षरों (कुल २४ अक्षर) के त्रिपद गायत्री छंद में कुल २४५६ ऋचाएँ श्रुत की गई है। जिसे हम गायत्री मंत्र कहते हैं वह ऋग्वेद की मूल ऋचा (३.६२.१०) त्रिपद है। तत्स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं॒ भर्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि । धियो॒ यो न॑: प्रचो॒दया॑त् ॥ इसमें ॐ और यजुर्वेद के अध्याय ३६.३ में भूर्भुवः स्वः जोड़कर चतुष्पद गायत्री मंत्र रचाया है। इस मंत्र के ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। सुबह सूर्योदय से पहले सूर्य की लाल रश्मियों से सुशोभित पूर्वी आकाश को सविता कहते है। इस रश्मियों का वरण तन और मन दोनों को तंदुरुस्त एवं बुद्धि प्रदान करता है। सही बुद्धि अच्छे कर्मों को बढ़ावा देती। मन को भी सविता माना गया है जिसमें परमात्मा की चैतन्य शक्ति अनवरत प्रवाहित है।इस प्रवाह का सात्विक उपयोग कर कोई भी मनुष्य अपने जीवन को उन्नत बना लेता है। मंत्र संदेश है। जीवन जीने का मार्गदर्शन है। उसके अनुसार चलें तो फ़ायदा बाक़ी रट्टा तो तोते को सीखाओ तो वह भी मारेंगे। सविता देव की उपासना करें और उसकी रश्मियों के तेज से बढ़ी बुद्धि के द्वारा सत्कर्म की और प्रशस्त हो। पूनमचंद ३ मार्च २०२५

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