अमेरिकन पीली (नेक) टाई।
सचिवालय गांधीनगर में मेरी एक छोटी नौकरी चल रही थी। एक दूसरे को देख हम भी ऊँचे पद पाने के लिये स्पर्धात्मक परीक्षा लिख रहे थे। ऐसे में स्टेट पीएससी की परीक्षा में अव्वल नंबर से उत्तीर्ण होने से मेरा हौंसला बुलंद हुआ और यूपीएससी का फॉर्म भर दिया। कुछ महीने यूँ निष्क्रिय रहा लेकिन बस में हमारे एक सहयात्री का चयन होने के समाचार ने तन-मन में एक बिजली दौड़ा दी। हमने पढ़ाई में ध्यान बढ़ाया और पहली बार IRS और दूसरी बार IAS प्रवेश का चक्रव्यूह जीत लिया।
अगस्त १९८५ का महीना आया, मसूरी जाने का वक्त आया। घर में कोई खुश नहीं था। कुछ को समझ नहीं थी और माता-पिता पुत्र को अपने से दूर जाने से दुःखी थे। माँ ने तो कह दिया मेरी तो दो ख़ुशियाँ जायेंगी, एक बेटा और दूसरा उसका पगार।माँ घर की वित्त मंत्री थी। १९८४ में अहमदाबाद कपड़ा मिल संकट के चलते कपड़ा मिल बंद होने से पिताजी और बड़ा भाई बेरोजगार हुए थे। रेलवे स्टेशन छोड़ने सब आए। मैंने यात्रा के लिए एक बैग ख़रीदा था। बैग में तीन जोड़ी कपड़े, एक चद्दर, एक स्वेटर और मेरे एक अमेरिकन दोस्त की दी हुई एक पीली टाई रखी थी। पिताजी ने ठंड से बचने के लिए रेमंड की एक वूलन शॉल ख़रीद कर रख दी थी। दिल्ली के लिए थ्री टियर ट्रेन का नोन एसी टिकट सरकारी कोटे से कन्फर्म करवाया था। जेब में आखरी पगार के बचे कुछ सौ रूपए थे। दिल्ली से देहरादून और देहरादून से मसूरी बस सवारी की थी। ३६ घंटे के सफ़र के बाद जब अकादमी पहुँचे, रजिस्ट्रेशन किया और नर्मदा हॉस्टल में कमरा लेकर अपना बेड सँभाला तब जाकर कहीं चैन पाया था।
यहाँ सब कुछ नया नया था। हिमालय की पहाड़ियाँ, वादियाँ, फ़िज़ाएँ, अकादमी और साथी परिवीक्षाधीन सब विस्मयकारी थे। सरदार पटेल हॉल में पहली सभा हुई और उसके बाद वर्ग खंड और काउन्सलर ग्रुप में प्रशिक्षण हो रहा था। धीरे-धीरे अकादमी की दिनचर्या और माल रॉड पर वॉक की दुनिया में सब ढल रहे थे। कुछ लोग वीक एंड आते ही अपनी मस्ती में मस्त हो जाते थे। मेस के खाने का स्वाद खाकर लौटनेवाले के चेहरे देखकर आ जाता था।
यहाँ कब और कहाँ क्या पहनना है और नहीं पहनना है के बारे में जानकारी दी जा रही थी। फॉर्मल होने के लिये मैंने भी सादिक दर्जी के पास जाकर एक बंद गले का सूट सिलवा लिया था।इनकम टैक्स का एक साथी जो पंजाब से था, एकदम गोरा चिट्टा और गोल मटोल तो तीन पीस सूट से हटकर कुछ पहनता ही नहीं था। कई साथी परिवी़क्षाधीनों को सूट-टाई में सजा धजा देखकर एक दिन मुझे भी अमेरिकन टाई बाँधने का मन हुआ। अमेरिकन टाई काफ़ी चौड़ी थी और मेरा गला पतला और छोटा। जैसे तैसे कर मैंने टाई की डबल गाँठ मारी तो मेरा गला ग़ायब था और पीली टाई की गाँठ उभरी थी। उस दिन की पहली क्लास काउन्सलर श्री बी पी कोठियाल के कमरे में थी। उस दिन क्लास में एक साथी परिवीक्षाधीन सुजाता मुझे देखकर बहुत हँसे जा रही थी। मैं कभी उसको देखता और कभी अपनी टाई को।पता नहीं मुझे ऐसा क्यूँ लगा कि वह मेरे छोटे गले पर लटकती बड़ी टाई पर हँस रही हो। ब्रेक होते ही मैं होस्टल के अपने कमरे में गया और पीली टाई उतार फेंकी। उसके बाद पूरे फ़ाउन्डेशन कोर्स में जब भी कुछ फार्मल पहनने की ज़रूरत पड़ी तब बंद गला कोट ही पहना लेकिन उस अमेरिकन टाई की तरफ़ देखने की हिम्मत ही नहीं हुई ।
पूनमचंद
८ फ़रवरी २०२५
You’ve captured the Academy slice of life beautifully!
ReplyDeleteBeautiful Dr Punamchand Bhai. Quite precious N personal. Thanks My Dear
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