Thursday, February 6, 2025

बरडो गुजरात।

बरडो गुजरात।

गुजरात विविधताओं का प्रदेश है। यहाँ दरिया है, पर्वत है; वन है वन्य प्राणी भी; रेगिस्तान की धरती है और पानी से तरबतर ज़मीन भी। लोग अहिंसक हैं और मीठे और खारे पानी से बने जलाशयों की वजह हैं सायबिरीया से लेकर युरोप तक के पक्षी अपना प्रजनन करने आ जाते है। इसलिए तो कहना पड़ता है कि कुछ दिन तो गुज़ारो गुजरात में। 

राज्य के पोरबंदर और जामनगर जिले की हद पर बना छोटी छोटी पहाड़ियों का क्षेत्र बरडा नाम से प्रसिद्ध है। क़रीब २८२ किलोमीटर वर्ग में फैला यह क्षेत्र पोरबंदर की ओर राणाबरडा और जामनगर की ओर जामबरडा के नाम से प्रसिद्ध है। राणाबरडा इसलिए कि राणावाव के प्रिन्सली राणाओं का क्षेत्र था और जामबरडा इसलिए की जामनगर के जाम साहब का क्षेत्र था। 

यहाँ वर्षा कम होती है और ज़मीन पथरीली इसलिए खेती में निम्न लेकिन वन्य वनस्पति से समृद्ध प्रदेश है। यहाँ बबूल गोरड के पेड़ बड़ी मात्रा में है। देशी बबूल, नागफनी (cactus), रायन, खेजड़ी, खेर, टिमरू, बेर, आवल इत्यादि जाति के पेड़, झाड़ी, पौधे, वनौषधियाँ यहाँ हरे भरे है। कई कई जगह जहाँ पानी का स्रोत अच्छा हो वहाँ बरगद, पीपल, आम के पेड़ मिलेंगे। यहाँ के किलेश्वर शिव मंदिर की शोभा निराली है। अब तो जाम साहब ने मंदिर नया करवाया है लेकिन इस परिसर में बने चेक डेम की वजह से मंदिर परिसर में लगे महायोगी की जटाओं से भरे बरगद के पेड़, आम्र वृक्ष और मयूरों और तोतों की मस्त उड़ान और कलरव मन को प्रसन्न कर देती है। क़ुदरती सौन्दर्य का पान करते करते अगर एक कप चाय पी ली अथवा खुले रसोईघर में खाना पकाकर अथवा अपने अपने डिब्बे खोल शिव दर्शन के साथ पिकनिक मना ली तो जीवनभर की याद बन जाएगी। 

बरडो यानी पीठ प्रदेश। चारों और फैली छोटी छोटी पहाड़िया सूरज की रोशनी के चलते दिन भर रंग बदलती रहती है। शाम ढलते सूरज की रोशनी से लाल रंग सज लेती अँधेरा होते ही काली चादर ओढ़ सो जाती है। रात होते ही आकाश चाँद और सितारों की रोशनी से पूरा चमक दमक उठता है। सप्तमी शुक्ल पक्ष का चाँद था इसलिए पूरा अँधेरा नहीं मिला फिर भी बिजली के प्रकाश प्रदूषण से दूर नभ रत का नजारा अद्भुत था। उत्तर दिशा की और स्वस्तिक आकार में घुम रहे सप्तर्षि तारा समूह में विवाह के प्रतीक वशिष्ठ के संग अरुंधती दिख जाएगी। उनके दायें सीध लिए कुछ दूर ध्रुव (polestar) का अटल तारा उत्तर दिशा दर्शाता है। उपर आसमान में पश्चिम से लेकर पूरब तक ग्रह, तारें और नक्षत्र फैले नज़र आएँगे। वे रहे पश्चिम आकाश में शनि, चंद्र और चमकीला शुक्र। सिर के उपर ओरियन की रूहानी चादर के बगल में गुरु और बगल में राशि मिथुन में चल रहा लाल रंगी मंगल को पहचानना आसान हो गया। १८० डिग्री के दृश्यमान आकाश में तारों से बनी आकृतियों में से मीन, मेष, वृषभ, मिथुन और कर्क राशि के चित्र ध्यान से देखने पर साफ़ उभर रहे थे। हमसे और अपने से कई प्रकाश वर्ष दूर यह टिमटिमाते तारों की दुनिया अकल्पनीय है। 

पहाड़ियाँ, वन, नदियाँ, झरने, झील के क़ुदरती क्षेत्र से पल्लवित इस क्षेत्र की नदियों पर खंभाला और फोदारा डेम बने है। यहाँ किलेश्वर महादेव के मंदिर के अलावा सोलंकी युग का नवलखा शिव मंदिर, सूर्य मंदिर; जाड़ेजा राजपूतों की कुल देवी आशापुरा माँ का मंदिर, स्थानिक देवी देवताओं के मंदिरों की एक सर्किट बनी हुई है। कहते है कि नवलखा नाम की वजह से कई साल पहले कुछ नुमाइंदो ने छिपे ख़ज़ाने को ढूँढने मंदिर के गर्भ गृह को खोद डाला था। ख़ज़ाना तो मिला नहीं, मंदिर को नुक़सान किया होगा। मंदिर की प्लिन्थ को देखें तो उपर का मंदिर छोटा नज़र आता है। हो सकता है ८००-९०० साल के अंतराल में कभी शिखर गिरा हो और फिर बनाया तब छोटा किया गया हो। चालुक्य वास्तुकला का यह मंदिर क्षेत्र की धरोहर है। गुजरात सरकार का प्रवासन निगम नवलखा मंदिर की सुधारणा और रखरखाव के लिए सक्रिय है। 

भूतकाल में यहाँ बरडा पहाड़ियों की परिक्रमा की सर्किट होगी। धूमली में भृगु कूप, रामेश्वर मंदिर, हलामण जेठवा की चाची सहित तीन समाधियाँ और मोटे मोटे तनेवाले आम और बरगद के पेड़ इस स्थान की प्राचीनता का सबूत देते खड़े हैं। यहाँ पास से बह रही नदी सोन कंसारी शेणी और विजाणंद की प्रेम कहानी को समायें हुए है। अपनी प्रियतमा को पाने नवचंदरवी भैंस लाने गए विजाणंद को खोजने शेणी जोगन वन निकल पड़ती है और जब हिमालय में उसका शरीर गलने लगता है तब विजाणंद से भेंट होती है। विजाणंद के विरही राग के जंतर की धून को सुनते सुनते शेणी मृत्यु के शरण जाती है और टूटे तार के जंतर और शेणी की यादों को लेकर लौटा विजाणंद बाक़ी ज़िंदगी विरह में गुजार लेता है। यहाँ के लोग दिलवाले भी और दिलेर भी। यहाँ की भैंसों से सँभालना होगा क्योंकि उसके सर पर कंघी करो इतने बाल हैं और आँखों में गुरूर है। 

कुछ किलोमीटर दूर भानवड में वीर मांगडा वाला और पद्मावती की प्रेम कहानी के प्रतीक समाधियाँ और उनकी प्रेम कहानी का साक्षी बरगद का पेड़ है। मांगडा ननिहाल में रहता था और जेठवा कन्या पद्मा के प्रेम में बंद गया था। घुमली की गायों की सुरक्षा में मांगडा की मौत होती है और वह भूत बन बरगद के पेड़ में रहता है। जब पद्मावती की दूसरे युवक से शादी तय होती है तब भूत मांगडा बारात रोक लेता है और पद्मावती से शादी करता है। दिन में बरगद और रात में पेलेसवाली यह रोमांटिक और विरह की कहानी कुछ चलती है फिर पद्मावती मांगडा की भूतिया मुक्ति कराती है। यहाँ बने समाधि मंदिर की दिवारें छोटे बच्चों की फ़ोटो से भरी भरी है क्योंकि जो लोग संतान या संतान की बीमारी के इलाज की मन्नत मानते हैं वे यहाँ बच्चों के फ़ोटो रख जाते है। 

गिर माँ है तो बरडो बाप है ऐसा गर्व लोग महसूस करते है। गिर से ज्यादा नहीं लेकिन इसके बराबरी करने का संभावना क्षेत्र है इसलिए वन विभाग ने बरडा अभ्यारण्य विकास का काम चालू कर दिया है। यहाँ ४७ जितने नेस है जिसमें अंदाज़ा पाँच हज़ार की आबादी हो सकती है। एक मेस में १०-१२ परिवार होते है। कुछ नेस तो ख़ाली हो गए है। कुदरत के सामिप्य में यहाँ का जीवन शहर की भागदौड़ की ज़िंदगी से विपरीत शांत और सरल है। नेसडा का टेसडा का अनुभव यहाँ रहे बिना नहीं हो सकता। वन विभाग के प्रयास से बरडा में आज आठ शेर खुले घूम रहे हैं और छह पिंजरे में बंद है। सांभर का ब्रीडिंग सेन्टर ६०-८० जानवरों को सँभाल रहा है। अभ्यारण्य में चित्तल, सांभर, नील गाय की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। तीन घंटे की जंगल सफ़ारी शुरू की है। छह लोगों की जिप्सी सवारी का टिकट ₹४००, गाइड के ₹४०० और स्थानिक जिप्सी के ₹१४०० मिलाकर ₹२२०० में चल रही सफ़ारी में वीकेंड में लोगों की आवन-जावन धीरे-धीरे बढ़ रही है। किलेश्वर महादेव के पास खेंगार विला में जी+१ का चार कमरों का एक रेस्ट हाउस है। आठ कोटेज नई बनी है। सुविधा रही तो प्रवासीओं को दहींओलो और मूंग की सब्ज़ी, बाजरे का रोटला, खिचड़ी, कड़ी, छाछ का प्राकृतिक स्वाद मिल सकता है। दहींओलो यहाँ का विशिष्ट व्यंजन है। बैंगन का भर्ता ही है लेकिन गरमागरम भर्ते में गाढ़ी दहीं मिलाकर परोसा जाता है जिसका स्वाद ही कुछ अलग है। अगर वापस लौट गए तो ३०-४० किलोमीटर पर वेणु नदी के तट पर सिदसर में बने उमिया माताजी मंदिर के भोजनालय के ताज़ा भोजन मिल जाएगा। सुबह ११ से शाम ७ बजे तक यहाँ बिना दाम भोजन में दो शाक, दाल-चावल, रोटी, बूंदी, नमकीन, मिष्ठान, छाछ परोसे जाते है। इस मंदिर परिसर को पैड, पौधे और फूलों के गमलों से यहाँ के एसआरपी बापा नाम के बुजुर्ग किसान ने इतना सुंदर सजाया है कि बस देखते ही रह जाओ। यात्राधाम प्रवासन हेतु प्रवासन निगम भी कुछ राशि देकर परिसर की सुविधा बढ़ाने अपना योगदान दे रहा है। 

बरडा नहीं देखा तो गुजरात नहीं देखा। कुछ दिन ज़रूर गुज़ारो गुजरात में। 

पूनमचंद 

५ फ़रवरी २०२५

2 comments:

  1. आपके वर्णन ने वहाँ के लिए मन में आकर्षण पैदा कर दिया है । लगता है एक बार वहाँ जाना ही पड़ेगा। ।
    - एम पी मिश्र

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  2. अति सुन्दर चित्रण.बरदो की विभिन्न प्रजातियों का सजीव वर्णन!!

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