प्रयागराज यात्रा का आखरी दिन।
आज का दिन आसान रहा। प्रवास का आखरी दिन था और सबको धरती का आखरी छोर घर और गृहस्थी नजर आ रही थी। मेवाड़ रेसॉर्ट के मेनेजर को शायद अनायास योग बैठा होगा की पिनाकीनभाई की पत्नी के नाम की डीस सुबह के नास्ते में रख देता था। आज भी उपमा के साथ पोहा और प्याज़ के पकौड़े थे। परसों नास्ते में सेब और कीनू सबूत रखें थे इसलिए सबने एक एक उठाये थे यह देखकर आज उसने दोनों काट रखे थे। चाय कॉफ़ी के साथ हमारे सहप्रवासी की भारत ब्लेक कॉफ़ी का स्वाद भी मिल गया। सबने भरपेट नास्ता किया और हम सुबह के ७.३० बजे घर की ओर वापस चल दिए।
आज फिर अंताक्षरी हुई। राजकोट की युवतियों को परसों हुए हार का बदला लेना था। उनके साथ में न्यूक्लियर से ऊर्जा पैदा करनेवाले तीन पुरुष यात्री और दो बुजुर्ग थे इसलिए उनका जोश ज्यादा था। पीछे आज थकान थी और आवाज़ में नमी आ रही थी। पलड़ा बराबर था लेकिन आज फ्रन्टवालों ने फिनिश किया।
दोपहर १२.३० बजे शाँवरिया किला गाँव के शिवकृपा रेस्टोरेंट में लंच के लिए हमने पड़ाव किया। गाँव के सरपंच का रेस्टोरेंट था जो एक ब्राह्मण युवक मासिक ₹३०००० के किराए पर लीज़ रखा था। खाना-पीना मुफ्त और मासिक ₹१०००० से २०००० कीं तनख़्वाह पर सेफ़ से लेकर सफ़ाई के १५ कर्मी रखे थे। मालसामान रसोई वगैरह सब मिलाकर मासिक रुपया तीन लाख से ज़्यादा खर्च लग रहा था। आजकल कुंभ मेले की वजह से धंधा ठीक चल रहा था लेकिन उसे आनेवाले दिनों की फ़िक्र थी।
खाना किफ़ायती था। एक सब्ज़ी, दाल, चावल, चार बटर रोटी और सलाद के ₹१३०। एक सब्ज़ी और जोड़ी तो हुए १५०, साथ में ₹१० का पापड़ और ₹२० की छाछ। ₹१८० में पूरी थाली तैयार। ताज़ा ही बना रहा था इसलिए ४०-४५ मिनिट रुकना पड़ा। मैंने वक़्त देखकर बगल की दुकान के दादूसिंह बार्बर के हाथ अपने बाल बनवा लिए। हमने कहा ठीक से काटना तो कहें सर आप राजस्थान में बाल कटवा रहे हो। कमजोर कटेंगे तो हमारी इज़्ज़त आपके यहाँ कम हो जाएगी इसलिए निश्चिंत रहिए। हमलोग सिर, बाल, उम्र को देखकर समझ जाते हैं कि कैसे काटना है। ₹५० में उसने शहर के ₹१००-२०० ले रहे बार्बर से अच्छी कटिंग की।
अब गरमा गरम खाना आ रहा था। २५-३० थाली खानेवाले थे और कुछ ख़ास लोग पुलाव, सब्ज़ी रोटीवाले भी थे। चार जैन थाली थी। पहले नॉर्मल थाली आई और समूह खाने लगा यह देखकर ख़ास पसंद के अपनी डीस के इंतज़ार से विह्वल हो उठे। किसी ने अपने पड़िके खोले तो कोई किचन की ओर ताक रहा था। कुछ ही देर में उनका खाना भी आ गया। सबने दबाकर खाया। उपमाबेन जो थाली में मटर-पनीर की सब्ज़ी जोड़ने के खिलाफ थी उन्होंने उसी को पहले स्वाहा किया। लंच निपटा के हम सब दोपहर पोने दो बजे वहाँ से चल दिए।
अब गुजरात की हद तक चलना था और शामलाजी टी ब्रेक लेना था लेकिन विठ्ठल टीडी की तीन पत्ती देखकर सिर दर्द हो रहा था इसलिए साडे पाँच को चाय के लिए रूक गए। चाय पी। राजकोट की लड़कियां जहाँ उतरती आईसक्रीम का ही पूछती। उन्होंने आईसक्रीम यहाँ भी नहीं छोड़ा। सबने ग्रुप फ़ोटो ली। एक कुत्ता उपमाबेन के पारले ग्लुकोज़ बिस्किट का कर्ज चुकाने ग्रुप फ़ोटो में खड़ा हो गया। यहाँ गुजरात एस टी के तीन स्टाफ़ का सबने आदर और आभार व्यक्त किया और शाम के साडे छह बजे वहाँ से चल दिए। बस अब अपने अपने घर सबको उतरना था पहुँचना था।
हमारा मुक़ाम रात ९.२८ को आया और हम उतर पड़े। राजकोट ट्रेन से जानेवाले चार महिला यात्री भी उतरकर गांधीनगर रेलवे स्टेशन चल दिए। कुछ ही देर में अहमदाबाद का आखरी स्टेशन आते सब उतर गए और अपने अपने घर पहुँचने में लग गए। अहमदाबादवाले रात्रि ग्यारह-बारह बजे, वडोदरा और सुरेन्द्रनगरवाले रात्रि सवा देढ बजे, भावनगरवाले ब्राह्म मुहूर्त ३.३०, राजकोट सुप्रभात के इंतज़ार में ५.३०, काकरापार टाउनशिपवाले सुबह ७.३० और कच्छ आदिपुरवाले ८.०० बजे अपने घर पहुँच गए।
सबने २५०० किलोमीटर की वॉल्वो बस सफ़र की थी। कुछ किलोमीटर स्कूटर-रीक्षा-स्थानिक बस में कटे थे। लेकिन सबसे कठिन तो दो दिन मिलाकर २०-२५ किलोमीटर पैदल जो चलाना पड़ा वही रहा। कुछ लोगों की चाल बदल गई थी। धर्म श्रद्धा के सामने शरीर कष्ट को इसलिए तप माना गया है। सब तपस्वी थे इसलिए पूरी सफ़र का आनंद लेते हुए ख़ुशहाल अपने विश्राम स्थान पहुँच चूके है। अब कोई संगम की मिट्टी बाँटेगा और कोई गंगा जल। कोई कोई अपनी अपनी कहानी कुछ तड़का देकर या मसालें मिलाकर सुनाएगा।
बोलो गंगा-यमुना-सरस्वती प्रयागराज संगम यात्रा की जय।
हर हर गंगे। 🙏💐🇮🇳
पूनमचंद
गांधीनगर
२ फ़रवरी २०२५
સાહેબ આપના અનુભવનો ખૂબ જ સાથ સહકાર મળ્યો અને આપે ખૂબ જ સારી રીતે બંને વક્તવ્યને એવી રીતે લખ્યા છે કે જાણે ઊભરવું આપણે નિબંધ લખતા હોઈએ ખરેખર આપને લખવાની કળા ખુબ જ સારી રહી અમને પણ આપનો અનુભવ મળ્યો એ બદલ આપનો ખૂબ ખૂબ આભાર સાહેબ જરૂર પડશે તો તમને ફોન પણ કરીશું. જય હિન્દ જય ભારત
ReplyDelete*Very good explanation with perfect timing
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