अपना समय अपने लिए लाभप्रद बनाओ।
गुरूमाई चिद्विलासानंद जी को वर्ष २०२५ के लिए मिला संदेश “अपना समय अपने लिए लाभप्रद बनाओ” उन्होंने सिद्ध योग पीठ के साधकों और खुद अपने द्वारा अमल करने प्रसारित किया है।
आइए संदेश के शब्दों का विश्लेषण करते हैं
अपना, समय, अपने लिए, लाभप्रद, बनाओ।
अपना मतलब?
समय मतलब?
अपने लिए मतलब?
लाभप्रद मतलब?
बनाओ मतलब ?
शुरू करते हैं अपने से। हम, मैं कौन? हमारे तीन शरीर है स्थूल, सूक्ष्म, कारण। हमारे कोष पाँच हैं अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और कारणमय। हमारा शरीर है, शरीर की दस इन्द्रियाँ है, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पाँच कर्मेन्द्रियाँ। उसके पीछे शरीर रथ का चालक मन। मन को मार्गदर्शन करती बुद्धि। बुद्धि के पीछे अच्छे बुरे सभी अनुभवों कर्मो का हिसाब रखता चित्त, चित्त के पीछे मैं हूँ का अहंकार। कहाँ पहुँचे? मैं पर। यानि मैं पना का अपना अहंकार पर ध्यान देना है। यहाँ यह ध्यान रखना है कि मैं अहंकार (होना) और अभिमान एक नहीं है। अपने होनेपन पर ठहरना है।
समय पर चलते हैं। इसे काल कहते है। घड़ी का समय। भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल कहलें। बचपन, जवानी बुढ़ापा कहलें। चार आश्रमोः शिक्षा, गृहस्थी, निवृत्ति और सन्यास कहलें। जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरियाँ अवस्था कहलें। अच्छा, मध्यम और कनिष्ठ समय कहलें। पूरी सृष्टि का रहस्य, काल और महाकाल के खेल में छिपा है। घटनाओं के चक्र से जुड़ा यह दृश्यमान जगत एक के परिप्रेक्ष्य में दूसरी घटना को समय से अलग कर देखता है, जिससे समय चक्र बनता है। चंद्र पृथ्वी का चक्कर लगाता है, पृथ्वी सूर्य का, सूर्य निहारिका का, निहारिका उसके उपर के केंद्र का। यहाँ पृथ्वी पर दिन-रात, ऋतु चक्र और जन्म जीवन और मरण की घटनाओं से समय चक्र चलता रहता है। पहले अपना कालखंड पहचानिए, और फिर बाक़ी रहे कालखंड को समझकर समय का लाभप्रद उपयोग करना है।
फिर बात आई समय का उपयोग अपने लिए करना है। अपना मतलब शरीर के लिए करना है अथवा मन-बुद्धि-चित्त के लिए करना है अथवा जिसे जीवात्मा कहते हैं वह अहंकार के लिए करना है अथवा आत्मा के लिए करना है? यहाँ चयन का प्रश्न उठेगा। हम अपने आपको क्या समझते है? अगर शरीर अथवा मन माना तो उसी तरफ़ दौड़ शुरू हो जाएगी। अगर चैतन्य आत्मा जाना तो यात्रा का रूख ही बदल जाएगा।
पहले चयन करेंगे। किसे पसंद करेंगे?
तन तंदुरुस्त तो मन तंदुरुस्त, मन तंदुरुस्त तो बुद्धि का तेज तंदुरुस्त। बुद्धि का मार्गदर्शन ठीक रहा तो मैं का विस्तार बढ़ेगा। इसलिए पूरी अष्टक और उसको चलानेवाली बिजली, चैतन्य के लाभप्रद काम करना है। सही चिंतन करना है, उसका मनन करना है, उसे अमल में लाना है और सही काम करने हैं।
अब बात आई लाभप्रद की। क्या लाभ चाहिए। विद्यार्थी अच्छे नंबर की चाहना करेगा। युवा को अच्छी नौकरी और सुंदर जीवनसाथी चाहिए। प्रौढ़ को संसार गृहस्थी के प्रसंगों प्रश्नों को हल करने का अर्थ चाहिए। बीमार और बूढ़े को इलाज और आराम चाहिए। इस बीच कईयों को धन संपदा इकट्ठा करना है। कईयों को महत्व सत्ता हासिल करनी है। कईयों को सुख भोग भोगने है। सब कंचन कामिनी और कीर्ति के पीछे दौड़ रहे है। क्या इन सबसे जिसे हम सब अपने लिए कहते है उसका लाभ होगा? अहंकारवाली मैं छोटी मैं है और समष्टि चैतन्यवाली मैं बड़ी मैं है। किसका बढ़ावा होगा यह सोचकर आगे कदम बढ़ाना है। एक साधे सब सधे ऐसा उपाय खोज निकालना है। अपने सच्चे स्वरूप की पहचान कर लेनी है। अपने सच्चे स्वरुप की पहचान होते ही सब की पहचान हो जाएगी। भेद का पर्दा हट जाएगा और अभेद हो जाएगा। तब साधक अपने में सबको समाहित कर महायान के जन कल्याण के मार्ग पर चल पड़ेगा। सबके लाभ में अपना लाभ बन जाएगा।
बनाओ मतलब कर्म करो। सबके लाभ के लिए कर्म करो। जितना वक्त बचा है उसको आत्म पहचान और आत्म कल्याण में लगा देना है। जीवन कर्म बंद नहीं करने है। पर कर्म करने की सोच को बदलकर करनें है। जीवन एक नाज़ुक डोर पर बँधा है। नीचे कूएँ में कालसर्प गिरने के इंतज़ार में मुँह फाड़कर प्रतीक्षा में है। तब शहद के टपकते रस को चाटकर वक़्त गँवाना है या जाग जाना है? चयन हमें करना है।
जो जाग गया उसने अपना समय लाभप्रद बना लिया। अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने देश और दुनिया के लिए।
अपने आत्म ज्योति की ओर जाग्रत होकर हर पल का उपयोग ऐसे करें कि वक्त अपने लिए और सबके लिए लाभप्रद हो जाए।
पूनमचंद
१० जनवरी २०२५
Jai Gurumayi
ReplyDelete🕉️ गुरु 🕉️ 🙏
ReplyDeleteJay gurudev
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