Saturday, February 1, 2025

महाकुंभ २०२५

 महाकुंभ २०२५


कुंभ मेला नाम पड़ते ही सामूहिक स्नान का पर्व सब भारतीय के सामने आ जाता है। कुंभ का स्नान हर हिंदू दिल की ख्वाहिश होती है। बहती नदी का जल ही तो है, कभी भी स्नान कर सकते है लेकिन ग्रह नक्षत्रों के योग से जुड़ा यह पर्व अप्रतिम लोकप्रियता हासिल किए है। 

कुंभ कहते ही गागर में समूह का योग बनता है। आकाश में कुंभ राशि के समूह में ४५ तारें को गिनकर हमारे पूर्वजों ने मकर संक्रांति से सूर्य के साथ चलते उसके कुंभ राशि में प्रवेश को जोड़कर ४५ दिन के उत्सव का एक ऐतिहासिक पर्व बनाया है। देव दानवों के समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए हलाहल और रत्नों के आख़िर आये अमृत कुंभ का ढक्कन खुला रह गया और जहाँ बूँद गिरी वह कुंभ मेले का स्थान बन गई।भारत देश में हिंदू धर्म को सनातन बनाने शंकराचार्य के चार पीठ, सती के ५१ शक्तिपीठ और कुंभ मेले जैसे पर्व अद्भुत व्यूह रचना है। 

१९८७ में मसूरी अकादमी ने आयोजन अभ्यास हेतु हम सबको हरिद्वार कुंभ मेला भेजा था। तब हमारा पूरा ध्यान प्रशासनिक व्यवस्था पर था। इतनी बड़ी संख्या में आ रहे यात्रियों के आवागमन, स्नान, निवास, भोजन, जल, सफ़ाई, सुरक्षा, ट्रेफ़िक, इत्यादि कई सारे पहलुओं पर ध्यान रखकर पूरी प्रशासनिक व्यवस्था काम पर लग जाती है। यश कम मिलेगा लेकिन एक छोटी लापरवाही बड़ी बदनामी ले आती है। ३८ साल बाद इस साल प्रयागराज महाकुंभ में स्नान का योग अचानक बन गया। इस बार भी नज़र तो थी अभ्यासी की लेकिन प्रशासन से हटकर पैदल चल रहे लाखों जन, बूढ़े, युवा, महिलाओं और बच्चों पर ज़्यादा टिकी रहीं। 

वैसे तो कुंभ मेला का पर्व सदियों से मनाया जा रहा है लेकिन आज़ाद भारत में और ख़ास कर के २१वी सदी के भारत में टेक्नोलॉजी और सोश्यल मीडिया के चलते इसका प्रचार और प्रसार बढ़ रहा है। वर्तमान भारत खर्च कर सकता है इसलिए श्रद्धालुओं की संख्या अत्यधिक बढ़ रही है। सरकारी प्रशासन पिछले अनुभव से शिक्षा लेकर उत्तरोत्तर सफल आयोजन और संचालन कर लेता है। अब इतने बड़े आयोजन का अचरज नहीं रहता लेकिन कुछ हादसा होते ही उस पर सब टूट पड़ते है। 

इस साल के प्रयागराज महाकुंभ में इतनी बड़ी संख्या में लोग आएँगे ऐसा अंदाज़ा शायद न रहा हो लेकिन प्रचार इतना असरदार था कि संख्या बढ़ती ही गई। मैं भी अख़बार और सोश्यल मीडिया के ज़रिए कुंभ मेला की हर ख़बर पढ़ता रहता था। मेरे बेटे ने प्रस्ताव रखा तब एयर फ़ेयर सस्ते थे लेकिन मैं मेला क्षेत्र के विस्तार को देखकर पीछे हट रहा था। फिर प्लेन का किराया पाँच गुना बढ़ गया तब अचानक गुजरात सरकार की वॉल्वो सवारी की ख़बर पढ़ते ही जो भीतर जा रहा था उसने उबाल ले लिया। १२५० किमी जाने के और १२५० आने के, तीन रात्रि और चार दिन का पैकेज जिसमें हर दिन औसतन १० से १२ घंटे की बस सफ़र डराती थी। लेकिन ₹८२०० में इतना लंबा प्रवास, निवास कौन दे सकता था? लक्ष्मी को पूछा और उसने हामी भर दी। एक फ़ोन मिलाया और दूसरे दिन ख़बर आई कि दो सीट रद होने से खुल गई और हमारा काम हो गया। २७ को विचार किया, २८ को टिकट हुई और २९ की सुबह चल दिए। सामान में दो जोड़ी कपड़े, कुछ वुलन्स और कुछ ज़रूरी चीज़ें। दो सोल्डर बेग लेकर दो हमसफ़र चल दिए। 

वोल्वो में २६ पुरुष और २० महिला मिलाकर ४६ प्रवासी थे। सब उत्साहित थे। युवा थे और बुजुर्ग भी। यात्रा में जीवन फूँकने का काम लड़कियों ने किया। पहले बस के फर्श पर बैठकर कर पत्ते खेलें फिर अंताक्षरी शुरू कर दी। पीछे बैठा महिला दल को पावरहाउस निकला। अंताक्षरी के हिंदी गानों में भजन और फटाणा मिलाकर जमावड़ा कर दिया। सुबह का नास्ता शामलाजी और दोपहर का लंच उदयपुर हाईवे कृष्णराज हॉटल पर हुआ। लंच में दाल बाटी चुरमा, सब्ज़ी रोटी का स्वाद आ गया। शाम के बाद रेसोर्ट पर डिनर का पूछा तो प्रति व्यक्ति ₹६०० बताया और देर भी हो जाती इसलिए समराणीया रंधावा ढाबे पर रूके जहां ₹२०० की थाली मिल गई। गरमागरम आलू मटर की सब्ज़ी, दाल, चावल और बटरवाली चार-चार रोटी। जिसने खाया मज़ा आ गया। रात पड़ते ही विश्राम स्थान के सुंदर रेसोर्ट को देखकर दिन भर की थकान मिट गई। गुजरात सरकार ने ₹७००० प्ल्स जीएसटी किराएवाले कमरों में चार-चार को रहने की सुविधा करी थी। रेसोर्ट फोर स्टार से कम नहीं था। रात हो चुकी थी, थकान थी इसलिए हम सबने चाबी ली और निद्रा देवी के हवाले हो गये। दूसरे दिन रेसोर्ट के फ़्री ब्रेक फ़ास्ट सबके मन भाया। सुबह साडे सात बजे बस चली और झाँसी के रास्ते दोपहर चित्रकूट पार किया। चित्रकूट बसों की पार्किंग से भरा पड़ा था। लोग अपना अपना खाना पकाकर अथवा डिब्बे खोलकर बस के अग़ल बग़ल नीचे बैठकर पीकनीक मना रहे थे। हमें आगे का पता नहीं था और ट्राफिक की वजह से चित्रकूट नहीं रुके इसलिए आगे फिर खाना नसीब नहीं हुआ। ढाबे की खोज आख़िर एक चाय की लारी पर पूरी हुई। समोसे, मठरी, चाय, पकौड़ी और पडीकों से सबने कुछ ईंधन भरा और प्रयागराज की और आगे बढ़े। 

अमावस्या की रात ३० लोगों की कुचलकर हुई मौत के हादसे ने प्रशासन को ज्यादा सख़्त कर दिया। बसों की पार्किंग दूर दूर कर दी। वाहनों के आवागमन पर नियंत्रण आ गए। शाम ६.३० बजे हमारी बस जसरा अन्डर पास पर रूक गई जहाँ से हमारा मुकाम लगभग २०-२४ किमी दूर था। स्कूटरवाले युवा ₹३००-५०० प्रति व्यक्ति सवारी देने तैयार थे लेकिन कुछ बार्गेनिंग करें तब तक एक पुलिसकर्मी आया और सबको भगाया। पहला दिन था, सबको स्नान का उमंग था इसलिए सब पैदल चल पडे। देहात से आए कई हज़ार लोग जूथ बनाकर चल रहे थे। महिलाओं के सर पर सामान और पुरुष के कंधों पर, छोटे-छोटे समूह में बने लोगों का एक पूरा प्रवाह नदी के प्रवाह को मिलने चल रहा था। एक तरफ़ नदी का प्रवाह और दूसरी तरफ़ मनुष्यों की श्रद्धा का प्रवाह। कुदरत और कुंभ का संगम हो रहा था। अचानक युपी रोडवेज़ की बस पर चढ़ते लोगों पर ध्यान गया, पूछा और कुछ चढ़ गये। लेकिन कुछ आगे जाकर ट्राफिक जाम था। बस में बैठे रहने से चलना तेज था इसलिए हम जो ८-१० बैठे थे उतर गये। हमारे साथियों के सेक्टर-६ जाना था। वे सब पैदल ही चलते रहे और जैसे तैसे क़रीब रात के ग्यारह बजे पहुँचे। गुजरात सरकार की निवास व्यवस्था बहुत ही अच्छी थी। ओन पेमेंट पाऊँ भाजी की व्यवस्था थी। कुछ ने खाया। कुछ थक गए थे इसलिए डॉरमेटरी में एक के उपर एक वाले पलंग को पकड़कर कंबल ओढ़कर सो गए। पलंग चौड़े थे इसलिए उपर से गिरने की संभावना नहीं थी। सुबह उठते ही वह सेक्टर-६ से संगम की और चल पड़े। यह वॉक भी लंबा था लेकिन मन में संगम स्नान की चाह में थकान का विचार दूर रहता था। 

इस तरफ़ बस से उतरते ही मेरा भाग्य जागा। अचानक एक फ़ोन आया औरकुछ सहाय मिल गई जो हमें सेक्टर-२४ में अपने टेन्ट तक छोड़ गई। जब पहुँचे तब घड़ी में नौ बजे थे।हमारा लायझन कर्मी भला इन्सान था। उसने लोकेशन भेजा था और डिनर के लिए पूछ लिया था। नेकी और पूछ पूछ। हमनें हामी भर दी थी। टेन्ट साफ़ सुथरा था। तीन पलंग गद्दे और रज़ाई के साथ तैयार थे। रूम हीटर भी था। पहले मोबाइल चार्जिंग में रखा और फ़्रेश हो लिए। तब तक भोजन तैयार था। आलू गोभी और मटर की गरमागरम सब्ज़ी, फूलका रोटी, दाल और चावल ने मन और तन ख़ुशबूदार कर दिया। भरपेट खाया और एक छोटे से वॉक के लिए चल पड़े। रात के १०.३० बजे थे  बाहर भीड़ जैसा कुछ नहीं था।कुछ कदम पीछे सामने छोर पर जाने का पुल था। पूछो तो कहा कि २४ नंबर ड्यूटी स्टाफ़ के लिए है। जनता के लिए कुछ और कदम दूर दूसरा पुल नं २६ है। फिर हम यमुना के किनारे संगम की ओर चलें। युपी सरकार ने मेला क्षेत्र के सभी रोड को लोहे के १२x३ की सीटों से जड़ रखा था। सफ़ाई कर्मी उस पर जम रही बालू को साफ़ करने में लगे थे। हर १०० फूट पर पीने के पानी का स्टेन्ड पोस्ट और कुछ कुछ अंतर पर जनता टॉयलेट की सुविधा थी। सफ़ाई ए१ कक्षा की थी। चारों और रोशनी का उजाला और कोई कोई स्थान से भजनों और मंत्रोच्चार के केसट के शोर था। खोया पाया कार्यालय किसी का बच्चा या किसी की बीबी की खोज के एनाउन्समेन्ट में लगा था। ज़्यादातर पुकार करवानेवाले बिहार, झारखंड, पूर्वी युपी, बंगाल के ही सुनाई दे रहे थे। धीरे-धीरे वह भी शांत हुआ। हम भी सुबह स्नान करना था इसलिए कुछ चलकर वापस आ गये और रज़ाई में छिपकर सो गए। 

सुबह चार बजे नींद खुल गई। सुबह की तन सफ़ाई कर कुछ देर ध्यान किया। तब तक हमारा कर्मी तैयार हो गया। बॉट ७.०० बजे के बाद लगती थी इसलिए हम ६.३० होते ही यमुना के तट पर चल दिए। रास्ते में परमार्थ निकेतन की बहुत बड़ी जगह में लोगों के रहने और खान-पान की व्यवस्था सँभालती देखी। आगे ज्यूडीशरी के लिए एक्सलूजीव टेन्ट के बने क्षेत्र  को देखकर नजर ठहर गई। अब संगम जाने का यमुनाजी का घाट आ गया था। वीआईपी और सामान्य स्टेन्ड पर लोग थे लेकिन बॉट नहीं थी। हम कुछ आगे चले और एक सरकारी व्यवस्था पर पहुँच गए। नसीब का साथ था। हाईकोर्ट के एक जज साहब और उनके परिवार के लिए बॉट लग रही थी। पहले तो खुली दो बॉट में जाने का आयोजन था लेकिन कवर्ड बॉट का चालक आया और बड़ी बॉट चालू कर दी। उनके बैठने के बाद हमारे कर्मीने बिनती की और हम तीनों का समावेश हो गया। बॉट संगम ले चली। सूरज पूरब से निकला था, वातावरण में हल्की धुंध थी और सायबिरियन गल और अन्य कई पक्षी बॉट के बहाव से उड़ उड़ कर हमारा स्वागत कर रहे थे। हम सबने संगम स्थान उतरकर डुबकी लगाई, स्नान किया और सूर्य को अर्घ्य दिया। कुछ देर पानी में रहे और फिर कपड़े पहन लिए। अचानक मेरे सहकर्मी ने कहा कि सर जूते बैग में रखो और जीन्स उतारो। मैं कुछ समझा नहीं। उसने बताया कि हमें स्नान के बाद अखाड़ों की ओर जाना है इसलिए नदी की उस पार जाना है। संगम स्थान पर पानी गहरा नहीं था इसलिए उपर के कपड़े पहन रखें और जीन्स उतारकर फिर पानी में कदम बढ़ा दिए। मेरी पत्नी अपने पेन्ट के साथ चल पड़ी। कंधे पर सोल्डर बेग उपर से शर्ट जेकेट का पहनावा और नीचे नंगा जंघा, मेरा हुलिया देखने जैसा हो गया। हम लोग पानी के मार्ग से सामने की ओर घाट पर स्नान कर रहे लोगों का वीडियो लेते हुए संगम पार कर गंगा की ओर आ गए। मुझे तो इतना मज़ा आया कि कुछ देर इसी लिबास में तट पर चलता रहा। फिर जीन्स चढ़ाई और पीपा पुल पार करने चल पड़े। पीपा पुल वन वे थे इसलिए तीन नंबर से नदी पार  कर अखाड़ों के सेक्टर में प्रवेश किया। चतुष्कोणीय सेक्टरों से बने क्षेत्र में रास्तों की दोनों तरफ़ भगवे रंग के प्रवेशद्वार, बड़े बड़े फ़ोटो और हॉर्डीग्स लगे थे। हर शिविर पर धजा पताकाएँ लहरा रही थी। सब साधुगण अपने अपने शिविर में बंद थे। शंकराचार्य, अग्नि, निरंजनी, नागा, अघोरी, जूना निंगली, हरिहर, योगदा, कालीकमलीवाला इत्यादि संतों की फौज अपने अपने देश बनाकर बिराजे थे और उनसे जुड़े भक्तगण अपने अपने पूजनीय के क्षेत्र के आसपास नज़र आ रहे थे। सुबह का वक्त था। भूख लगी थी। एक अमरूदवाला मिल गया। प्रयागराज के लाल अमरूद बहुत मशहूर है लेकिन मेरी पत्नी ने बड़ा देखकर पसंद किया अमरूद सफेद निकला। स्वादिष्ट था। १०० रूपये किलो का भाव सुनकर एक पुलिस कर्मी अमरूदवाले पर भड़क गया और उस पर बरस पड़ा। ३० रूपये किलो के अमरूद के १०० लेते हो? उसे भगाया लेकिन तब तक हमारे हाथ ₹२० का एक अमरूद आ गया था। मन भर स्वाद लिया और सुबह को मीठी बना ली। कुछ चले होंगे कि सहसा एक शिविर के आगे से किसी ने खिचड़ी का प्रसाद आगे धर दिया। हमने हरिओम कर दिया और कुछ आगे जाकर उपर अदरक की चाय पी। फिर हम अपने परिचित संत को मिलने सेक्टर १९ पहुँच गए। डॉल-अमरकंटकवाले बाबाजी कल्याणदास जी शिविर में मौजूद थे। दर्शन मुलाक़ात हुए। उन्होंने आज्ञा की कि भोजन लेकर जाना। हमें जाने की जल्दी थी फिर भी उन्होंने आग्रह किया कि जलपान तो ज़रूर करें इसलिए हम मना नहीं कर पाए। भण्डारा टेन्ट में गए तो हलवा, कचौरी, मटर उसल, रसगुल्ला की थाली परोस दी गई।  उसमें इतना स्वाद था की हलवा तो दो बार लिया। कचौरी का स्वाद तो अद्भुत था। ऐसी स्वादिष्ट कचौरी जीवन में पहलीबार खाई। पेट भर तृप्त हुए हम वापस चल पड़े। जाना था जसरा जिसे कोई नही् जानता था। नैनी बस अड्डे का पूछे तो कोई दाएँ बताए तो कोई बायाँ। हम कभी आगे चले कभी पीछे और रोड में उलझ पड़े। स्कूटर वाले हमें फँसा समझकर सवारी के भाव बढ़ाने लगे। पैर चल रहे थे इसलिए हमने आख़िर पीपा पुल १४ से नदी को पार कर आम लोगों के क्षेत्र में कदम रख दिए और चुंगी नाके को लक्ष्य बनाकर चल दिए। चलना जैसे ख़त्म नहीं हो रहा था। एकाध जगह विश्राम किया, प्रसाद में मिले थे वह फल खाये और कदम आगे बढ़ाए। चलते चलते एक लारी में बच्चोंवाली सुगर ओरेन्ज गोली देखकर मेरा बच्चा मन ललचाया। गोली ख़रीदी और मुँह मीठा कर लिया। हम दो जैसे तैसे कर चुंगी नाका पहुँचे। वहाँ से ₹४० में एक स्कूटर मिल गया जो युपी रोडवेज़ की बस के चौराहे पर छोड़ गया। वहाँ से बस मिली जिसने ₹३५ के किराए में गजरौला ब्रिज के पास उतारा। वहाँ से कुछ कदम चले तब तक एक ओटोबाले ने फ्री लिफ्ट दी और हमें पार्किंग में पड़ी बस के दरवाज़े पहुँचा दिया। दोपहर का १ बजा था। सब पहुँच रहे थे। बाक़ी लोग आते ही हमारी बस ने दोपहर के २.३० वजे जसरा छोड़ा। आज न कोई गानेवाला था न बजानेवाला। सब चल चल कर थके थे इसलिए सो गए। जब जागे तब चित्रकूट पार हो गया था। एक चाय ब्रेक लिया। कुछ लोग गुजराती फ़िल्म देखने लगे। रात बढ़ने से पहले जो मिला वह खाया ऐसे इरादे से एक फेमीली रेस्टोरेंट पर रुके। ओर्डर लेनेवाले भारी शरीर के थे इसलिए एक एक कर माँगनेवाली गुजराती आदत से गर्म हो रहे थे और खाना ठंडा परोस रहे थे। कुछ को ठीक लगा कुछ को बेकार। महंगा नहीं था इसलिए खाने से फ़रियाद कम थी। फिर फ़िल्मवालो ने अपनी फ़िल्म देख ली। मुझे पता नहीं चला कि दादाजी ने चुराया हार मिला की नहीं। रात के सवा बजे बस मेवार रेसोर्ट पहुंची। सबने अपनी अपनी चाबी ली और नींदे की आग़ोश में खो गए। सुबह होते ही सब के चेहरे पर स्मित लौट आया। गर्म पानी का स्नान, ताजे कपड़े और पकोड़े, उपमा, पोहा, फल, चाय, कॉफ़ी का नास्ता, सब तृप्त थे।

तीन दिन पहले सुबह सात बजे अहमदाबाद से चले थे और महाकुंभ के सफल संगम स्नान के बाद आज सुबह सात बजे अपने घर की ओर लौट रहे हम सब ख़ूब ख़ुश और गुजरात सरकार और उसकी एसटी और टुरीजम की टीम के आभारी थे। 

पूनमचंद 
NH-27
१ फ़रवरी २०२५

6 comments:

  1. Very very nice and unforgettable experience for this mahakumbh

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर और सजीव चित्रण के साथ लिखा हुआ संस्मरण। हार्दिक बधाई 🙏

    ReplyDelete
  3. Mr.P.K.Parmar was very nice administrative Officer of Gujarat Cadre and retired as an additional Chief Secretary. During his tenure of 35 years of career he has been very distinct in his duties. Wishing him a very happy life 🙏 Jay Shri Ram 🙏 Jay Shri Budhha Mahavir ji 🙏

    ReplyDelete
  4. Very interesting article for Maha Kumbh 🙏

    ReplyDelete
  5. Beautiful detailed explanation with perfect timing 🌟🌟🌟👌

    ReplyDelete

Powered by Blogger.