यह सिद्ध योग पीठ की गुरुमाई चिद्विलासानंद का २०२५ के साल का संदेश हैः Make Your Time Worth Your Time : अपने समय को अपने लिए लाभप्रद बनाओ।
मनुष्य जीवन कर्म आधारित है। इसलिए महाकाल के इस चक्र में कर्म करते रहना है। लेकिन कौनसा कर्म करना, अपना अपना चयन है। कर्म दो प्रकार से होते है। एक स्वार्थ के लिए और दूसरा परमार्थ के लिए। अपने और हमें जिसमें चाहना होती है वह परिवार के लिए किए गये कर्म, जिसमें ९९% लोगों के कर्म का घेरा सिमट जाता है। लेकिन कुछ कुछ लोग इस घेरे को तोड़ समूह, जाति, वर्ण, राज्य, देश, देशांतर तक बढ़ाते बढ़ाते वैश्विक हो जाते है। लेकिन यह तो लौकिक कर्म हुए। अलौकिक का पता नहीं रहा तो कैसे चलेगा?
बौद्ध धर्म के फैलाव में यही बात प्रमुख थी। एक यान था हीनयान और दूसरा था महायान। हीनयान व्यक्तिगत उत्थान पर लक्ष्य रखता था जबकि महायान समूहगत। लेकिन व्यक्तिगत उत्थान के बिना समूहभान नहीं आता इसलिए व्यक्तिगत जीवन में सत्व और सत्य का प्रभाव बढ़ाने सम्यक जीवन जीना ज़रूरी है। इससे ह्रदय में पवित्रता बढ़ती है और पवित्र ह्रदय ही ईश्वर रूप होकर औरों को अनुग्रहित करता है। इसलिए अपने समय को अपने लिए लाभप्रद बनाना है।
लेकिन लाभ कौनसा? बड़ा प्रश्न है। शिवोहम् का अथवा सांसारिक सुखों का? जिसके लिए प्रयास करेंगे वह मिलेगा।
“कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती, करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।”
पूनमचंद
२ जनवरी २०२५
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