सनातन - कैवल्य
पहले ह्रदय खोजो,
फिर उसकी गुहा में उतरो,
ज्ञानाग्नि से द्वैत मिटाओ,
आत्म स्वरूप में स्थित होकर,
कैवल्य पद - सनातन को प्राप्त हो।
यही लक्ष्य है।
तन-मन-बुद्धि साधन है।
सबको भीतर उतार प्रपंच भेद मिटाओ।
आत्मा बिना आँख देखता है,
बिना कान सुनता है।
उस प्रकाश - बोध को पहचानो।
वह हम है।
हमारे सिवा और कुछ भी नहीं।
क़बूल हो।
अनुभूत कर क़बूल हो।
क़बूल हो।
पूनमचंद
४ जनवरी २०२५
सत्य, लेकिन प्रारब्ध अनुसार ही गति, उपलब्धि । अंतिम ध्येय प्राप्ति पूर्व स्वधर्म, स्वकर्म ही कल्याण साधक।
ReplyDeleteप्रकाश - बोध की अनुभूति के लिए चरणबद्ध यत्न की सुंदर शिक्षा ।
ReplyDelete- एम पी मिश्र