अहमदाबाद गुज़री बाज़ार का एक ग़रीब उद्यमी।
अहमदाबाद में एक गुज़री बाज़ार है जो हर इतवार को लगता है। उसे रविवार बाज़ार भी कहते है। गुजरात का सुल्तान अहमदशाह जब यहाँ से गुज़र रहा था तब उसके कुत्ते का सामना यहाँ के ख़रगोश ने किया इसलिए सुल्तान ने अहमदाबाद शहर बसाकर इसे अपनी राजधानी बनाया। इस अहमदाबाद का शिलान्यास जहाँ हुआ था इसी जगह सन १४१४ से हर रविवार गुज़री बाज़ार लगता है। पहले तो यह बाज़ार यहाँ अंग्रेज़ों ने बनाए विक्टोरिया गार्डन में लगता था लेकिन रीवर फ़्रंट बनने के बाद नई सड़क के किनारे बनी नई फुटपाथों पर लगता है।
६१० साल हुए इस flee market को लेकिन उसका आकर्षण कम नहीं हुआ। यहाँ पुरानी चीज़ें ज्यादा और नई कम मिलती थी। अब नईं चीज़ें भी मिल जाती हैं। यहाँ कपड़े, पुस्तकें, घरेलू सामान, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर, घड़ी, स्टोव, पालतू जानवर जैसे की बिल्ली, ख़रगोश, रंगबिरंगे पंछी और खानेवालों के लिए मुर्ग़े और बकरे वगैरह बिक जाते है। अहमदाबाद की फुटपाथ और ग़रीब बस्तियों की गलियों में जो खाने को मिले वह सब चीज़ें यहाँ मिल जाती है। ₹५ में एक गुलाबजांबू, ₹१० का कटलेट, ₹१० की एक कप चाय, ₹१० का चना चटपट, ₹१० की दूध की बरी, ₹१० का ज्यूस, ₹ २० का एक प्लेट भजिया, ₹१० का पान, ₹१० की एक मावा चिकी, ₹१० का क्रीम रोल, ₹६० की एक पैकेट टूटीफूटी केक, ₹७० में २५० ग्राम तिल गजक की कोई भी आइटम यहाँ मिल जाएगी। स्वाद तो असली होगा बस प्लेट काग़ज़ आम आदमीवाला होगा।
मेरे लिए यह बाज़ार बचपन की धरोहर है जहाँ मैं अपने पढ़ने के शौक़ को पूरा करने पुरानी पुस्तकें खोजने चला आता था। मेरे घर से पैदल लगभग एक घंटा लगता था। एक घंटा जाना और एक घंटा आना तथा एकाद दो घंटे गुज़री में घुमने के, आधा दिन चला जाता था। लेकिन इतना सस्ता और कहीं नहीं मिल सकता था इसलिए मेरे छोटे पैर चल पड़ते थे।
पिछले रविवार हम इस गुज़री बाज़ार गए थे। सुबह ११ बजे का वक़्त था। भारी भीड़ थी। डर लग रहा था कि कहीं किसी का इन्फ़ेक्शन लेकर वापस न जाए। फुटपाथों पर ढेरों सारा सामान बिक रहा था। बीच में चलने की जगह भी कम पड़ रही थी। पुस्तकें अब कम हो गई थीं और पुराने टूटे फूटे इलेक्ट्रॉनिक्स की बिक्री बढ़ गई थी। वैसे तो कुछ जमा नहीं, फिर भी रोटी और डोसा उतारने के दो तवे और एक चिमटी ₹५०० में मिली तो ले ली। एक कश्मीरी ड्राय फ्रूटवाला मिल गया। अखरोट, बादाम, काजू, केसर और शिलाजीत लेकर बैठा था। बाज़ार से सस्ता था लेकिन जैसे कश्मीरी बातों में होशियार होते हैं इसलिए ठीक से सौदा करना ज़रूरी समझा। स्वादिष्ट थे इसलिए कुछ ड्रायफ्रूट ख़रीद लिए। शिलाजीत पर भरोसा नहीं आया।
अचानक मेरी नज़र एक स्टेन्ड पर पतीला रखकर खड़े युवा पर गई। पतीले में एक किलो जितने उबले देशी चने थे। बाहर दो-चार प्याज़ और टमाटर, कुछ निंबू, दो एक कच्चे आम, थोड़ा सा धनिया पत्ती, दो छोटी डिब्बीओं में मसाले, एक पतली सी दस रूपये की पट्टी-चाकू और न्यूज़ पेपर से काटें काग़ज़ के टुकड़े रखें थे। कुछ दोसों रुपये का सामान होगा।एकाध प्याज़, टमाटर, आम को वह बहुत ही बारीक काटके रखे हुआ था। जैसे ही वह कम होता पतली सी चाकू पट्टी से जैसे मिलिमीटर में काट रहा हो, बैसे बड़ी सफ़ाई से वह बारीक काट लेता था। कोई ग्राहक आता तो काग़ज़ के टुकड़े पर तीन चार टी स्पून उबले चने डाल कर उपर्युक्त चीज़ों का ज़रा ज़रा सा उपयोग कर वह चने में स्वाद भर देता था।चम्मच भी काग़ज़ का एक मोटा टुकड़ा रहती थी। सिर्फ़ १० रुपये में वह मल्टी स्टार का स्वाद परोस देता था। मुझे बचपन याद आ गया। पाँच पैसे का चना आज ₹१० का हो गया था। लेकिन मुँह वह पुराने स्वाद की याद से भर गया था। झटपट ₹१० निकाला और चना चटपट का स्वाद ले ही लिया।
वह युवा युपी से आया था। किराये के कमरे में दूसरे साथी के साथ रहता था। अपने हुनर और छोटी सी मूडी के ज़रिए वह अपना गुज़ारा कर लेता था। उससे बात करते करते मेरे बचपन में देखे हज़ारों परिवारों के चेहरे सामने आ गए। एक कमरे का मकान अपने नाम करते करते पूरी ज़िंदगी गुज़र जाती थी। साइकिल ख़रीदते तो फूलमाला चढ़ाते और नारियल फोड़ सबको प्रसाद बाँटते दिन याद आ गए। घर में पहली बार बिजली लगा तो मानो स्वर्ग उतर गया। जब बोस रेडियो ने गाना सुनाया तो उसकी आवाज़ उतनी ऊँची रखते थे कि आसपास के सब लोग सुन ले।
एक तरफ़ मूडीवाद से अपनी संपत्ति बढ़ाता और दूसरी तरफ़ समाजवादी विचारधारा से वंचितो को विकास का लाभ बांट ग़रीबी कम करता नया भारत मेरे सामने था। ग़रीब भारत अमीरी के क़दम चल रहा है लेकिन दूसरी तरफ़ वह युवा का जीवन १९७०-८० के दशक में देखें युवाओं से कोई विशेष नहीं लगा। हाँ, उसके कपड़े साफ़ सुथरे थे, पैरों में चप्पल थी और हाथ में मोबाइल। भारत देश में ऐसे हज़ारों लाखों युवा अपना वतन, गाँव, माता पिता परिवार छोड़ अपने छोटे छोटे हुनर लिए पूरे भारत में जहाँ थोड़ी सी जगह मिल जाए, अच्छे जीवन की तलाश में खड़े मिल जाएँगे।
भारत चमकना चाहिए। दमकना चाहिए। लेकिन वह चमक की रोशनी में हमारे देश के ग़रीब उद्यमी युवा नज़र अंदाज़ न हो जाए यह सावधानी रखनी होगी। भारत जनसंख्या में प्रथम और अर्थव्यवस्था में पाँचवाँ है लेकिन २.४% क्षेत्रफल पर विश्व की जनसंख्या के १८% भाग को शरण देता है इसलिए प्रति व्यक्ति आय में पिछड़ा है, विश्व में १४१ वे स्थान पर है। ग़रीब भारत उपर उठेगा तभी अमीर भारत की शान बढ़ेगी।
पूनमचंद
३० दिसंबर २०२४
अच्छा है
ReplyDeleteહું જ્યારે ચાંદખેડામાં રહેવા આવ્યો હતો ત્યારેઆ ગુજરી બજાર માંથી ટીપોઇ ખરીદી લાવ્યો હતો.એ વાત ની યાદ તાજી થઇ.
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