नकटा।
एक आदमी की नाक कट गई। बड़ा परेशान। लोगों के बीच में कैसे जाए? क्या जवाब दें? थोड़ी हिम्मत इकठ्ठी कर मंदिर तक जाने लगा। कोई पूछे तो जवाब न दे। लेकिन एक आदमी बड़े आग्रह से हर दिन पूछता था इसलिए उसने अपना जवाब बना लिया।
बताया कि एक दिन उसे सपने में भगवान के दर्शन हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। मैंने मांगा कि भगवान आप मुझे हमेशा दर्शन देते रहिए। भगवान ने कहा कि इसके लिए तुम क्या कर सकते हो? मैंने बताया आप कहो तो मैं अपनी जान दे दूँ। भगवान ने कहा जान नहीं चाहिए बस नाक काटके दे दे। मैंने तुरंत ही चाकू उठाया और नाक काटकर आगे धर दी। भगवान बड़े प्रसन्न हुए और हमेशा दर्शन देने का वरदान दिया, इतना ही नहीं कहा की जो तुमसे नाक कटवाएगा उसे भी मेरे दर्शन का लाभ मिलेगा।
वह आदमीं कई सालों से मंदिर आ रहा था लेकिन भगवान ऐसे दर्शन देते हैं उसका पता नहीं था। दोबारा पूछा क्या भगवान के साक्षात दर्शन होते है? नकटे ने बताया, हाँ जी। यह देखो भगवान मेरे सामने खड़े हैं और मंद मंद मुस्कुरा रहे है। उसने उस तरफ़ देखा लेकिन कुछ नहीं दिखा। फिर भी भगवान के दर्शन की अभिलाषा थी। सोचा सौदा महंगा नहीं। सिर्फ़ एक नाक ही तो कटवानी है। वह तैयार हो गया और नकटे से अपनी नाक कटवा ली। लेकिन यह क्या कोई भगवान नहीं दिख रहा। उसने नकटे ये पूछा कि मुझे तो कोई भगवान नहीं दिख रहे। नकटे ने जवाब दिया मुझे भी तो नहीं दिख रहे। तो फिर क्यूँ मुझे जूठ बताया और मेरी नाक कटवा ली। नकटे ने बताया मैं अकेला था इसलिए बड़ा परेशान रहता था। अब हम दो हो गए। फिर दूसरा क्या करता? पहले वाले की तरह बातें करने लगा। दोनों मिलकर दोहराने लगे कि उनके हाथ से जो नाक कटवाएँगे उनको भगवान के दर्शन होंगे। बस संख्या बढ़ने में क्या देरी थी? दो के चार हुए, चार के आठ, आठ के सोलह, भीड़ बढ़ती गई और कुछ ही महीनों में उनका पंथ बन गया।
सत्य सबको पता है लेकिन नाक जो कटी है, अब किस मुँह से बताएँ कि हम जो कह रहे हैं वह ग़लत है। हम अपनी गलती छिपाने जिनकी नाक सबूत है उसकी काट रहे है। सत्य की आवाज़ अंतरात्मा की आवाज़ हैं जो भीतर से आनी है। प्रश्न करते रहिए। प्रश्न की चोट जब चैतन्य पर गहरी होने लगेगी, अपने आप जवाब बन सामने आ जाएगा। इसके लिए नकटा होने की ज़रूरत नहीं। 😁😜
पूनमचंद
१९ दिसंबर २०२४
सौजन्यः किसी सत्संग से।
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