Monday, December 16, 2024

क्या हुआ? किसका क्या गया?

 क्या हुआ? किसका क्या गया? 

इस महीने तीन घटनाओं से मेरा सामना हुआ। मेरे दूर की नज़र के चश्मे टूटे थे इसलिए नए के लिए गांधी रोड अहमदाबाद में स्थित एक परिचित की दुकान गया था। दुकान के मालिक की रूम के बगल में एक ३५ साल के आसपास का लड़का शांत बैठा था। बात निकली तो पता चला कि वह उनका पुत्र है जो जन्म से बहरा और गूंगा है। वह सुन नहीं पाया इसलिए समझ नहीं पाया और इसलिए बोल नहीं पाया। कुछ इशारे, कुछ गुजराती संज्ञा शिखाने का प्रयास किया लेकिन सामान्य युवक की तरह वह शिक्षित नहीं हो पाया। संयोग से परिवार को दूसरे वर्ण की एक बहरी और गूंगी लड़की मिल गई जिससे उसकी शादी करवाई। लड़की चतुर होने से उसे रेलवे में नौकरी मिल गई जहाँ वह रजिस्ट्री में निर्धारित काम करती है। युगल को एक लड़का हुआ लेकिन वह भी जन्म से बहरा और गूंगा हुआ। तीनों पात्रों पर गौर फ़रमाए। तीनों के पास स्वस्थ शरीर है। तीनों के पास मन है। मन है इसलिए बुद्धि और चित्त दोनों है। मैंने युवक से वार्तालाप का प्रयास किया। लेकिन पाँच ज्ञानेन्द्रियों में से एक कर्णेन्द्रिय नहीं होने से वह बाह्य जगत को देख तो रहा है लेकिन उसके बारे में ज्ञान ग्रहण नहीं कर पाने से उसे दूसरे स्वस्थ पंचेन्द्रिय मनुष्यों की तरह न समझ आ रही है न उसके बोध को ग्रहण कर रहा है। शरीर की भूख, तृषा और तृष्णा को भोग लेता है लेकिन उसकी अभिव्यक्ति की समझ नहीं होने से वह देखते हुए भी अंधकार में जी रहा है। 

दूसरी घटना में ८४ साल के हमारे एक निवृत सीनियर आईएएस अधिकारी को एक सुबह उठते ही वाणी और तर्क का औरिएन्टेशन चला गया। वह परिचित परिवार और दृश्यों को देखते हुए भी उसको सही ढंग से पहचान कर बोल नहीं पा रहे थे। उन्होंने लिखने का प्रयास किया लेकिन हाथ उनके मन में चल रहे शब्दों को प्रकट नहीं कर पा रहा था। इतने सालों से अर्जित की विद्वता पल में ग़ायब हो गई। उन्हें अस्पताल ले गए जहाँ ब्रेन में ट्यूमर निकला जिसे सर्जरी सी दूर करवाया। अब सर्जरी के बाद वह अपने पूर्व रूप में पुनः आ जाते हैं कि नहीं उसका पता कुछ दिनों या महीनों के बाद चलेगा। उनका शरीर स्वस्थ है। मन भी स्वस्थ था। चित्त भी है क्योंकि उन्होंने बार-बार अपने मन में चल रहे विचार प्रवाहों को बाहर प्रकट करने प्रयास किए लेकिन कर नहीं पाए। बस बुद्धि के कुछ क्षेत्रीय कार्य न्यूरॉन दब गए, बिखर गए जिससे उनका प्रसंग संदर्भ चला गया और वह जिह्वा होते हुए भी गूँगे हो गए। 

तीसरी घटना मेरी इस हप्ते हमउम्र शिवजी से मुलाक़ात की है। चार साल हुआ था उनकी २७ सालकी एक बेटी के देहांत को लेकिन बात करते करते बेटी के जाने का ग़म चेहरे पर उभर आया और आँखें नम हो गई। क्या हुआ था? इतनी छोटी उम्र में वह कैसे चल बसी? मैंने सवालों की बौछार लगा दी। लेकिन जब जवाब सुना मैं अवाक हो गया। दरअसल वह बच्ची जन्म से ही कोमा में थी। फोरसेप डीलीवरी के कारण वह एक गहरी नींद में चली गई थी जहाँ वह कोई भी प्रतिक्रिया नहीं कर सकती थी। जन्म से लेकर २७ साल तक वह कोमा में रही और बिस्तर पर ही बड़ी हुई। शिवजी उसे हर दिन नहलाते, धुलाते और प्रवाही खुराक खिलाते और बड़ी करते। उसकी तबियत में हल्का सा उतार-चढ़ाव हो जाए तो डॉक्टर हाजिर। पूरा ध्यान बस एक ही लक्ष्य पर कि वह कोमा से बाहर आ जाए। २६ जनवरी २००१ के कच्छ भूकंप के दिन अहमदाबाद के कई मकान गिरे थे। उसमें उनका फ्लैट कोम्पलेक्स भी शामिल था। जैसे ही भूकंप आया, बिल्डिंग हिलने लगी और सब दौड़ के बाहर आए और जल्दी से नीचे उतर गए। शिवजी भी नीचे आ गए थे। लेकिन तुरंत याद आया कि ८ साल की वह बेसुध बच्ची तो उपर रह गई। वह तुरंत भागे उसको लेने। लोगों ने रोका, हाथ पकड़ा, कहा क्यूँ अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो, बच्ची वैसे भी न जीने के बराबर है। लेकिन बाप नहीं रुका। दौड़ के चौथी मंज़िल चढ़ा और बच्ची को गोद में उठाकर नीचे ले आया। बिल्डिंग भी शायद यही इंतज़ार कर रही थी, उनके आते ही वह धराशायी हो गईं। शिवजी ने फिर पूरी बिल्डिंग और फ़्लैटों को नये से बनवाया लेकिन बेटी की देखभाल करते रहे। २०२० में एक दिन जब वह उसे नहला रहे थे तब उसने अपनी गर्दन उसके कंधे पर डाल दी और उसकी चेतना शांत हो गई। कुछ ही मिनटों में उसका शरीर नीला हो गया। डॉक्टर को बुलाया लेकिन वह गुज़र चुकी थी। २७ साल तक वह रही इस पृथ्वी पर सिर्फ़ हल्की सी एक चेतना के सहारे लेकिन उसके मन, बुद्धि, इन्द्रियों ने उसका साथ नहीं दिया। साथ क्या वह थे नहीं अथवा साथ देने के क़ाबिल नहीं थे।

उपयुक्त तीन कहानियों में दो विकलांगता जन्म से है और एक आयु बढ़ने से। तीनों ही स्थितियों में मनुष्य शरीर के साधन में कुछ कमी आने से उसका ज्ञानार्जन और अभिव्यक्ति बदल गए। प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या यह परिवर्तन उसके स्थूल शरीर का है या सूक्ष्म शरीर का? क्या इस परिवर्तन का असर उनकी आत्मा पर होगा? क्या उसके कर्म संस्कार पर होगा? क्या उसके जन्म मरण के चक्र में कोई फर्क पैदा करेगा? जब बाह्य जगत को समझ पाना मुश्किल हो गया फिर अपने चैतन्य और चैतन्य के सोर्स को कैसे पहचानेंगे? ज्ञान ही नहीं रहा फिर ज्ञानी कहाँ रहा? 

महाज्ञानी महापुरुष भी आयु से शरीर का अंत आते आते कमजोर पड़ते दिमाग़ और इन्द्रियों की वजह से जीवनभर जो कुछ ज्ञान उपार्जन किया था वह खोने लगते हैं। किसी को खोने में महिने लगते हैं कोई आखरी पल में खो देता है।जीवन प्रवाह बंद होते वक्त हो सकता है कोई एक विचार या स्मृति रहे लेकिन जैसे ही श्वास बंद हुआ सब शांत हो गया। जीवन समाप्त हो गया। न कुछ गया, न कुछ आया, विसर्जित हो गया। 

पूनमचंद 

१५ दिसंबर २०२४

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