Monday, July 15, 2024

असीम संभावना क्षेत्र ।

असीम संभावना क्षेत्र। 


जैसे बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज की सृष्टि है, जैसे एक गेऊ के दाने से अनेक दाने उत्पन्न होते हैं वैसे ही मनुष्य इत्यादि योनि एक जीवन से दूसरे जीवन का पुनर्जन्म है। यहाँ कुछ भी नाशवान नहीं है, बस स्वरूप रूपांतरण हो रहा है। 


जैसे अंतरिक्ष के वस्त्र पर सभी आकाश गंगा, निहारिका, तारें, सूर्य, ग्रह, उपग्रह विद्यमान हैं वैसे ही चैतन्य के पट पर यह सारा ब्रह्मांड लीलामय है। 


यहाँ कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं; सब कोई चैतन्य की अभिव्यक्ति है। 


जैसे अंधेरे में रहा मुर्ग़ा बाँग देकर अपनी मौजूदगी ज़ाहिर करता है, यह सृष्टि उसकी मौजूदगी की खबर देती है। 


हर जीव का स्रोत उस शक्ति-चैतन्य से है इसलिए हर जीव शक्ति से जुड़ा है। इसलिए उस शक्ति को प्रकट करने की असीम संभावना हर जीव में विद्यमान है। क्षणिक जीवन में कौन कितना कर सके यह उसका स्वातंत्र्य है। 


शक्ति के पीछे शिव है। आगे पीछे कहाँ? दोनों का सामरस्य है। उन्मेष निमेष का चक्र है। इसलिए दोनों का अनुभव और दोनों की अभिव्यक्ति हर जीव का संभावना क्षेत्र है। जब तक अनुभूत नहीं हुआ, और अनुभूति अभिव्यक्त नहीं हुई तब तक चलते रहना है। 


जागते रहो और चलते रहो। 


श्रवण, मनन, निदिध्यासन करते रहो। (सुनो/पढो, समझो और अमल करो)।


पूनमचंद 

१६ जुलाई २०२४

1 comment:

  1. Biggest mystery for modern physics is to explain the concept of time and its flow in an objective manner. There is no present past or future. Quantum mechanics, Thermodynamics and Statistical physics are trying to correlate with some equation that could explain. What we perceive as apparent reality is very small compared to what is not apparent. Philosophy gives some solace. Mukesh Khullar

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