पूर्ण।
ईशावास्य और बृहदारण्यक उपनिषद का शांति पाठ पूर्णमदः पूर्णमिदं… एक अद्भुत रचना है।
अर्थ अनेक होंगे लेकिन एक पूर्ण कहीं दूर और एक पूर्ण यहाँ अपने सामने ऐसा नहीं लगता। अदः और इदं दो अलग-अलग नहीं परंतु एक है।
अदः शब्द रूप पुल्लिंग प्रथमा विभक्ति एकवचन है। सर्वनाम है। इदम् स्री लिंग एकवचन सर्वनाम है। परम का अनुक्रम से शिव और शक्ति रूप इंगित है। दो नहीं एक है, सामरस्य है। अदृश्य दृश्य।
परम में होने की आहट चिदानंद शिव (प्रकाश-awareness) है। इच्छा-ज्ञान क्रिया शक्ति (विमर्श) है। अंकुरण ध्वनि ओम (तत्सत) सदाशिव है। फिर ईश्वर, शुद्ध विद्या और आगे मायालय का हमारा पृथ्वी तत्व तक का हमारा विश्व। व्यापकता से संकोचन की यात्रा। जितना संकोच उतनी जड़ता और जितनी व्यापकता उतनी चेतनता।
संकोच विस्तार की क्रिडा है।
किसकी?
अद्वैत की।
कहाँ हो रही है?
पूर्णोहं के पटल पर।
कहाँ है?
है, हम परिचित है। बस ठीक से इंगित कर पहचानना बाकी है। कोई नया नहीं जो मिल जाएगा। कोई दूर नहीं जहां जाना है।
हमारे साधन शीशे है, उसे माँझ लेना है निष्काम कर्म से; स्थिर करना है उपासना, भक्ति से; और जान लेना है शरणागति, श्रद्धा, ज्ञान से।
प्राप्तस्य प्राप्ति। निवृतस्य निवृत्ति।
पूर्णता अमरता है। मृत्यु के भय से पार शाश्वत का साक्षात्कार। आत्मा की प्रत्यभिज्ञा।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
अद्भुत मंत्र है। मंत्र का साक्षात्कार करें।
पूनमचंद
१३ अप्रैल २०२४
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