Friday, January 5, 2024

 ध्यान। (meditation) 


किसी ने प्रश्न किया था कि ध्यान करते करते नींद आ जाती है। ध्यान करते करते नींद आ जाना स्वाभाविक क्रिया है क्योंकि साँस की गति धीमे होते ही ओक्सिजन की मात्रा कम होने लगती है और मन अपनी जाग्रति खोने लगता है और नींद आ जाती है। 

हमारी जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति मन की ही तो अवस्थाएँ है। मन प्रधान है इसलिए हम मनुष्य है। मन जब चैतन्य के पूर्ण तेज से भर जाता है तब जाग्रत हो जाता है और मन जब थक जाता है तब साँस की गति धीमी कर सोने लगता है और सुषुप्ति में चला जाता है। सपने आमतौर पर पहली नींद ख़त्म होने के बाद जब हम सोने का प्रयास करते है तब प्राण हिता नाड़ी में प्रवेश करते ही हम सपने देखने लगते है।  यह अवस्था अर्ध सुषुप्ति जैसी है। इसलिए पूर्ण जाग्रति की अवस्था का बोध हमारी याददाश्त में लंबे वक्त तक रहता है; स्वप्न प्रयास से याद रखने पड़ते हैं और नींद तो हमने आधा जीवन सोने में बिताया लेकिन कुछ भी याद नहीं रही। पूरा खेल ओक्सिजन की मात्रा और मन की अवस्था भेद का है। 

आत्म साक्षात्कार में हमें तो मूलाधार में साडे तीन कुंडल मार बैठी शक्ति को जगाना है, उसे सुषुम्ना पथ में दाखिल कर उपर ले जाना है और ब्रह्मरंध्र में बैठे शिव के साथ मिलन कर आत्म साक्षात्कार करना है। यह करने के लिए बस अहं-मन को निर्मल कर अपने सत् स्वरूप का साक्षात्कार करना है। 

कश्मीर शैव दर्शन के आचार्य स्वामी लक्ष्मण जू सुषुम्ना को सूक्ष्म साँस से समझाते हैं जिसमें सासों की गति न के बराबर हो जाती है, जिसमें नथुने के आधा एक इंच जितना प्राण संचार बना रहता है। धीमी साँस से धीरे-धीरे ओक्सिजन की मात्रा कम होती जाएगी, मन शिथिल होने लगेगा, जगत विक्षेप घटने लगेगा और आत्म प्रकाश का अनुभव होने लगेगा। अब जब आत्म अनुभव की स्थिति आई तब सोने लगेंगे फिर ध्यान का क्या अर्थ? ध्यान करना है मतलब कम ओक्सिजन में जाग्रत रहना है। क्रिया शैथिल्य से वैसे भी ओक्सिजन की ज़रूरत कम हो जाएगी। साधु बाबा लोग ध्यान करने शायद इसलिए कम ओक्सिजन की जगह वाली पहाड़ियों में चले जाते होंगे। ध्यान करते करते एक बार जब खुद की पहचान हो गई, अपना पता लग गया फिर मन चाहे जाग्रत में हो या स्वप्न में, या सुषुप्ति में, तुरीया तो हमेशा बना रहेगा। बस उस तुरीया को पहचान कर तुरीयातीत सर्वाकार साक्षात्कार करना है। 

इसके लिए लंबे वक्त तक हिले-डुले बिना एक आसन में बैठने की क्षमता पानी है। इसके लिए आसन करने होंगे। साँसों की धीमी गति से कम ओक्सिजन से जाग्रत रहना है इसलिए प्राणायाम करके फेफड़ों को ओक्सिजन से पूरी मात्रा में भर देना होगा। इन्द्रियां आहार के लिए बहिर्मुख है उसे अंतर्मुख कर प्रत्याहार कराना है। बिना उद्देश्य क्रिया का क्या अर्थ? इसलिए धारणा बनानी है। धारणा पर ध्यान करना है। ध्यान करते करते (जाग्रत रहकर) सम+अधि, समत्व धारण किये अपने सत् स्वरूप में अधिष्ठित हो जाना है। तभी तो समाधि घटेगी। 

ध्यान बस एक मन को सँभालकर राह पर लाने का प्रयास है, जिससे की हमें अपने सच्ची पहचान हो जाए। एक बार अमर सत्य को पहचान लिया फिर मृत्यु का भय कैसा? न मृत्यु रहेगी, न जन्म। सिर्फ़ अमृतसर रहेगा। 

चलें अमृतसर?

पूनमचंद 

५ जनवरी २०२४

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