सूरज के रंग।
रोज़ सुबह सूरज आकर, सबको सदा जगाता है।
शाम हुई लाली फैलाकर, अपने घर को जाता है।
दिनभर खुद को जलाकर, यह प्रकाश फैलाता है। उसका जीना ही जीना है, जो काम सभी के आता है।
उगते सूरज का रूप और लालिमा किसे नहीं लुभाता? सूरज है तो सफ़ेद रंग का और इन्द्रधनुष के सातों रंग लिए है, लेकिन पृथ्वी का वातावरण ऋतुचक्र से उसका दर्शन प्रभावित होता है। सुबह और शाम के वक्त सूरज की रोशनी जिस वातावरण से गुजरती हैं वैसे ही उस के लाल रंग की आभा अलग-अलग नज़र आती है।
हर ऋतु में सूर्योदय के वक्त सूर्य बिंब अलग रंग लिए है। शिशिर (माघ-फाल्गुन) में ताँबे जैसा लाल, वसंत (चैत्र-वैशाख) में कुमकुम वर्णी, ग्रीष्म (ज्येष्ठ-आषाढ़) में पाण्डु (फीका) वर्णी, वर्षा (सावन-भाद्रपद) में एक से ज़्यादा वर्ण का, शरद (आसो-कार्तिक) में कमल जैसा और हेमंत (मृगशीर्ष-पोष) में रक्त वर्ण दिखता है।
इस रंग का अभ्यास करते हुए भारतीय ज्योतिषियों ने इसे पृथ्वी पर हो रही घटनाओं से जोड़ा है। नारद संहिता कहती है कि अगर सर्दियों (मृगशीर्ष-फाल्गुन) में सूर्य बिंब पीला, वर्षा (सावन से कार्तिक) में श्वेत, गर्मियों (चैत्र-आषाढ़) में लाल रंग का दिखे तो अनुक्रम से रोग, अनावृष्टि तथा भय पैदा करता है। सूरज अगर ख़रगोश के खून जैसे रंग का दिखे तब राजाओं के बीच महायुद्ध होता है। उदय और अस्त के वक्त अत्यंत रक्त वर्ण का दिखे तो राजा का परिवर्तन होता है।
अभी शरद काल है। सूर्य कमल जैसा होना है। लेकिन रक्त वर्ण लिए है। युद्ध और राज परिवर्तन का संकेत है।
पूनमचंद
१५ अक्टूबर २०२३
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