परम शिव।
कश्मीर शैव दर्शन में ३६ तत्वों से बने इस सृजन की भूमिका में परम शिव के प्राकट्य को, शिव शक्ति सामरस्य को; इच्छा, ज्ञान, क्रिया, चिद्, आनंद क्रम से समझाया गया है।
लेकिन बड़ी मुश्किल है इस क्रम को समझने की।
इच्छा किसे होगी? जिसे भान होगा। जिसे अपने होने का ज्ञान होगा। ज्ञान भी एक प्रकार से शांत स्थिति में स्पन्द है, इसलिए सूक्ष्म क्रिया है। अगर चिद् (चेतन) नहीं हो तो उसमें इच्छा, ज्ञान, क्रिया संभव ही नहीं। आनंद तो उसका स्वभाव है शांत भी और ललित रस किलोलें।
इसलिए कौन प्रथम और कौन बाद में तय करना मुश्किल है। पाँचों एक साथ क्यूँ नहीं? पंच वही परमेश्वर।
क्रम को छोड़ अक्रम में जाना ठीक होगा क्योंकि हमारी हर इच्छा, ज्ञान, क्रिया, चेतना, आनंद का मूल स्रोत परम शिव ही है जो शक्ति स्वरूप बन प्रकट है।
शिव पूर्ण है।
पूर्ण से पूर्ण ही प्रकटता है।
अपूर्ण कहाँ?
पूनमचंद
३० सितंबर २०२३
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