शिव बावड़ी।
हिमाचल प्रदेश के शिमला के समरहिल इलाक़े में स्थित शिव बावड़ी मंदिर विस्तार में १४ अगस्त २०२३ के दिन सुबह सात बजे से बारिश चल रही थी। पवित्र अधिक माह सावन का सोमवार था। भगवान शिव की पूजा आराधना का दिन। एक परिवार के सात लोग, माँ, पुत्र, पुत्रवधू, तीन पौत्री, स्वजन और पुजारी भगवान शंकर की पूजा आराधना कर आरती उतार रहे थे। तीन भतीजे प्रसाद के लिए मंदिर के रसोईघर में खीर बनाने और लाने गये हुए थे। अचानक मंदिर भूस्खलन की चपेट में आ गया।पुजारी और सात लोगों के परिवार समेत १५-२० लोग मलबे में दब गये और दो बच्चे समेत ११ शब रात तक निकाले गये। प्रकृति आपदा के सामने मनुष्य ने स्थापित किया मंदिर और मंदिर में स्थापित देव लिंग मूर्तियाँ जब खुद ही भूस्खलन की चपेट में आ गये फिर अंदर रहे मनुष्यों को कैसे बचाते? २०१३ के जून माह में जब पहाड़ों में अविरत बारिश हो रही थी फिर भी लोग केदारनाथ जा रहे थे। बादल फटने से उपर रहा गांधी तालाब टूटते ही लोग बह गये। दो बहाव के मध्य भूमि पर स्थित मंदिर तो एक बड़े पत्थर की आड़ में बच गया जिसे हम चमत्कार समझकर महिमा मंडन करते है; लेकिन बाढ़ के बहाव में 6054 लोगों की मौत को कोई रोक नहीं पाया।ऐसी हज़ारों आपदाएँ- घटनाएँ हमारे सामने बनती रहती है।
आराध्यदेव की पूजा को कोई नहीं नकारता लेकिन उसने दी हुई बुद्धि को किनारे रख हादसे के शिकार बनते रहना क्या बुद्धिमानी होगी? अगर सलामती चाहिए तो प्रकृति के क़ानून को मानना पड़ेगा और उसका पालन करना ही पड़ेगा।
इस पृथ्वी पर हमारे उपलक्ष्य में पाँच देव है। एक पृथ्वी माता जो हमारा आशियाना है। दूसरा आकाश जो सबको घूमने फिरने की जगह दे रहा है। लेकिन अंतरिक्ष के तीन देव हमारी बड़ी सहायता करते है। तीनों के संकलन से हमारी जीवन डोर टिकीं रहती है।अग्नि देव सूर्य के रूप में हमें उष्मा देता है, बर्फ़ को जलमय रखता है, समुद्र के जल की भाँप बनाकर वर्षा के बादल तैयार कर वरूण देव को अंतरिक्ष में स्थापित करता है। वरूण देव पृथ्वी पर भी और आसमान में। फिर आते हैं पवन देव।पृथ्वी को घनी चादर बन कर घेर रखा है। जीव सृष्टि को प्राणवायु देता है। वायुमंडल पाँच परतों में विभाजित होकर सूर्य की हानिकारक किरणों से हमें बचाता है। सूर्य की गर्मी से भाँप बने जल कणों को उठाकर आसमान में ले जाने सहायक बनता है। फिर वरूण देव की सवारी को दरिया पार पृथ्वी के खंड खंड पर लेकर भूमि को नव पल्लवित कर जीव सृष्टि को भोजन और पानी की व्यवस्था में सहायक बन जाता है। इसलिए वेदों में अग्नि (सूर्य, सविता),वरूण (इन्द्र, मित्र) और मरूत (रूद्र) की पूजा और प्रार्थना की गई है। चंद्र देव भी सूर्य की दाहक ऊर्जा को शीतल रूप में प्रतिबिंबित कर वनस्पति का पोषण कर सोमदेव के रूप में पूजनीय स्थान पाये है। धावा पृथ्वी भी मातृ स्थान पर पूजनीय है।
इसलिए दृश्य जगत के प्राकृतिक देवता पूजनीय है। साथ साथ उनके क़ानून है उसका पालन करना भी इतना ही आवश्यक है।
बिजली हमें AC बनकर शीतलता देती है और हीटर बनकर गर्मी लेकिन बिजली के तार को हम मित्र समजकर हाथ में पकड़ नहीं सकते। मौत को न्योता हो जाएगा। यह पूरा अस्तित्व शक्तिरूपा है। बड़ी शक्ति के सामने छोटी शक्ति की हार या नाश स्वाभाविक चल रहा है। शक्ति के पीछे रहा अव्यक्त इस लीला का साक्षी है। शक्ति रूप भी वही है और शिवरूप भी वही।
सलामती, सुख और समृद्धि के लिए प्रकृति से तालमेल करना इस जगत का क़ानून है। इसलिए उनकी पूजा आराधना ज़रूर करें साथ साथ उनके नियम क़ानून का पालन करें।
विज्ञान और विश्वास को साथ साथ चलने दें।
सलामत रहें स्वस्थ रहें।
पूनमचंद
१६ अगस्त २०२३
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