Wednesday, July 19, 2023

आत्मदर्शन।

 आत्मदर्शन। 


भगवान बुद्ध अपने भिक्खूओं के साथ वनीय विस्तार से गुजर रहे थे। एक जगह ठहर गए। बुद्धको प्यास लगी थी। एक भिक्खू जल लेने चला गया। एक तालाब खोज निकाला। लेकिन उसमें से एक बैलगाड़ी गुजरी थी इसलिए जल मैला था। वह बिना जल लिए वापस लौट आया। कुछ देर बाद बुद्ध ने उसे वही तालाब से जल लाने को कहा। भिक्खू गया, तालाब शांत था, जल निर्मल और उसने झुककर एक लौटा पानी भर लिया। बुद्ध ने शिक्षा दी कि हमारा मन भी उस तालाब के पानी की तरह है। सामान्य रूप से तो है शांत और स्थिर, लेकिन परिस्थितियों से वह विचलित और मैला हो जाता है। इसलिए मन को निर्मल करने कोई विशेष प्रयास नहीं करने है परंतु जिससे विक्षेप पैदा हुआ है उस स्थिति को गुजर जाने देना है। 


मन का उपादान सत्व गुण है इसलिए उसको निर्मल होने में कोई कठनाई नहीं होनी है। बस हमनें अपने संस्कारों के भण्डार गृह में जो जानकारी भर रखी है, जिसकी वजह से हमारा अहंकार विक्षेप पैदा कर रहा है, उसको ख़ाली करना है। शांत मन निर्मल दर्पण बन जाएगा, अपने आत्मरूप का दर्शन कर लेगा। 


शांत, स्थिर बैठे रहने की शिक्षा दी जाती है। रात में सोते समय सुषुप्ति में हम शांत और स्थिर हो जाते है। न पदार्थ है, न मन, न यह संसार। सुषुप्ति के आनंद से कौन नहीं है परिचित? सुषुप्ति ही हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर की बैटरी को चार्ज कर देती है। लेकिन जागते ही संसार लग जाता है इसलिए तुरीया और तुरीयातीत; शुद्ध विद्या, ईश्वर, सदाशिव का हमें पता नहीं चलता। समाधि इसी में दाखिल होने की साधना है। 


जब हम जागते है, तब जीव चेतना स्थूल शरीर में, स्वप्न में सूक्ष्म शरीर में और सुषुप्ति में कारण शरीर में बनी रहती है। जाग्रति में हम शरीर, इन्द्रियाँ, मन से पदार्थ जगत का उपभोग करते है। स्वप्न में स्थूल शरीर विश्रांति में है लेकिन मन अपने बनाये पदार्थों को भोगता है। सुषुप्ति में शरीर शांत, इन्द्रियाँ शांत, मन भी शांत इसलिए जीव कारण में विलीन होकर पदार्थ विहीन सुखरूपता का अनुभव कर लेता है। लेकिन उठते ही वह संसार की जाल जंजाल में फँसकर सुख दुःख का भोगी बन जाता है। 


कहते हैं कि जागा हुआ पुरूष अपलक हो जाता है, पलक नहीं झपकती। वैसे तो यह स्वचालित क्रिया है। तबीबी हिसाब से पलक न झपकना दिमाग की एकाग्र होने की क्षमता कम होने की निशानी है। लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में मन को स्थिर करने का उपाय। 


एक प्रयास करें। सुखासन। आँखे बंद करें। अब दोनों आँखों को स्थिर रखनें का प्रयास करें। देखें उसके हल्के वायब्रेशन कैसे शांत होते जा रहे हैं और साथ साथ आपका मन भी शांत होता चला जा रहा है। 


दूसरा प्रयोग करें। सुखासन, आँख बंद, ओठ आधे खुले और जिह्वा को मुँह के मध्य में स्थिर करें। न उपर जाने देना है, न नीचे। बच मध्य में स्थिर। देखते ही देखते, आँखों की पुतलीयां शांत हो जाएगी और मन भी। 


यह तो हुई क्रिया, मन को शांत और स्थिर करने की। परंतु बिना ज्ञान उस मन दर्पण का करोगे क्या? 


बस  इसलिए ही एक दर्शन अभ्यास चाहिए। जिसका श्रवण, मनन, निदिध्यासन करने से, जो देखना चाहते हो वही दिखाई देने लगता है। सगुण चाहो तो सगुण और निर्गुण चाहो तो निर्गुण। 


आज बस इतना ही। 


पूनमचंद 

१९ जुलाई २०२३

1 comment:

  1. Very good, short but sweet. We are fortunate to have benefit of your deep study which you share,
    Thaks lot many Sir... Gs Bokhani

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