Tuesday, June 20, 2023

मूल त्रिकोण।

 मूल त्रिकोण। 

तंत्र में एक केन्द्र है, महाबिंदु है जिसमें रक्त और श्वेत बिंदु नज़र आते है। केन्द्र में रक्त बिंदु है। रक्त बिंदु के आसपास श्वेत-शुक्ल बिंदु आवृत है। बिंदुओं को एक श्वेत त्रिकोण ने घेरा है और यह समग्र आकृति नील वर्णिय भूपुर में स्थापित है। 


रक्त बिंदु शिव है, अग्नि स्वरूप है। शुक्ल बिंदु शक्ति है, सोम स्वरूप है। एक सूर्य, दूसरा चंद्र। रक्त और श्वेत से बना महाबिंदु सदाशिवरूपी आसन है। प्रकाश-अग्नि के संपर्क से शक्ति-सोम का स्राव होता है। महाबिन्दु के स्पन्दन से तीन बिंदु अलग होकर तीन रेखा बनकर महात्रिकोण का रूप धारण करते है। इसी से शिव से पृथ्वी तक समस्त विश्व का आविर्भाव-सृष्टि होता-होती है। विश्वातीत विश्वमय बन जाता है।यह पराशक्ति की अभिव्यक्ति है, विश्वरूप चक्र का आवर्तन है, शिवशक्ति की लीला है।


प्रकाश के चार अंश अंबिका, वामा, ज्येष्ठा और रौद्री। विमर्श के चार अंश शान्ता, इच्छा, ज्ञान और क्रिया। और इनकी यह लीला। 


अंबिका-शान्ता के तादात्म्य से परावाक्-इच्छाशक्ति (विश्व बीज); वामा-इच्छा के तादात्म्य से पश्यन्ति-ज्ञानशक्ति (अंकुरण); ज्येष्ठा-ज्ञान के तादात्म्य से मध्यमा-क्रियाशक्ति (स्थिति); रौद्री-क्रिया के तादात्म्य से वैखरी (प्राकट्य) होता है। 


यह चार वाक् (परा, पश्यन्ति, मध्यमा, वैखरी) परस्पर मिलकर मूल त्रिकोण बनाते है। अंबिका और शान्ता मध्यबिन्दु शिवशक्ति आसन है, जो नित्य स्पन्दमय है। वाम पश्यन्ति (वामा-इच्छा) रेखा, मध्यमा अग्र (ज्येष्ठा-ज्ञान) रेखा, और वैखरी दक्षिण (रौद्री-क्रिया) रेखा है। 


भूपुर (चतुष्कोण) से महाबिन्दु तक फैला समग्र विश्वचक्र महाशक्ति का विकास है। शिव स्वर और शक्ति व्यंजन की वर्णमाला है।  


विश्व कुंडलिनी और व्यक्ति कुंडलिनी की यह भूमिका है। योगमार्ग से मूलाधार से आज्ञा चक्र और आज्ञा चक्र से उन्मना (आज्ञा-बिन्दु-अर्ध चंद्र-निरोधिका-नाद-नादान्त-शक्ति-व्यापिका-समना-उन्मना) तक का, सकल से निष्कल यात्रा मार्ग है। 


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पूनमचंद 

१९ जून २०२३


साभारः तांत्रिक साधना और सिद्धांत, महामहोपाध्याय डॉ. श्रीगोपीनाथ कविराज

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