सत्य की खोज।
सत्य की खोज भारत की प्राचीनतम धरोहर है।
कपिल मुनि ने सृजन का विवेचन २५ तत्वों की संख्या गणना से किया था। परंतु मन बुद्धि की सीमाओं को लांघकर बुद्ध ने मनुष्य जीवन के चार आर्य सत्य (दुःख, दुःख का कारण, दुःख का अंत, दुःख के अंत का मार्ग) को निरूपण कर अष्टांग मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मात, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि) से निर्वाण पथ का निर्माण किया था। दूसरी और काशी से मुनि पतंजलि ने तन और मन के जोड़/योग पर ज़्यादा ध्यान दिया और मुक्ति के लिए योगसूत्र से अंतरंग और बहिरंग अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) निरूपित किये।
एक तरफ़ वैष्णवों का द्वैत था और दूसरी तरफ़ आदि शंकराचार्य का अद्वैत। वेदांत बेजोड़ है।
जब पूरा कश्मीर बौद्धमय था तब ९वी शताब्दी में वसुगुप्त ने
कश्मीर शैव मत का प्रसार किया था। जिसका उद्गम केन्द्र थे मुनि दुर्वासा। कश्मीर शैव कुल मिलाकर बौद्ध, सांख्य, द्वैत, अद्वैत को मिलाकर अस्तित्व और अस्तित्व के पार के रहस्य को उद्घाटित करता है। इसमें यम, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, तारक, ईश्वर प्रणिधान (भक्ति) और समाधि को महत्व दिया गया है। परंतु इसके अर्थ में पतंजलि के अर्थ से कुछ भिन्नता भी है। यम यहाँ अहिंसा का है। एक बाहरी कि गई प्रधान हिंसा का निषेध और दूसरी मन बुद्धि के स्तर की आंतरिक हिंसा का भी निषेध। तारक यहाँ धारणा से अलग है, विवेकशील, पारलौकिक तर्क का तड़का है। त्रिक तर्क और भक्ति का अनोखा संगम है। निचले स्तर से आणवोपाय (यम, नियम, आसन, प्राणायाम इत्यादि) से शुरू कर मध्यम शाक्तोपाय (द्वैत, कुंडलिनी योग) से गुजरते उपर शांभवोपाय (अद्वैत) को लांघकर कोई विरला अनुपाय (अद्वय-परम) की यात्रा कर अपने मनुष्य जीवन को धन्य कर लेता है।
आचार्य अभिनव गुप्त कहते हैं कि यह अस्तित्व शिवशक्ति का स्फार (विस्तार) है, इसलिए शिवशक्ति का ज्ञान माया के कारण अपूर्ण हो सकता है लेकिन उसका अभाव नहीं हो सकता। इसी अपूर्ण ज्ञान की सीडी को पकड़कर तर्क और भक्ति से आगे बढ़ते हुए पशुभाव से मुक्ति और पतिभाव में स्थिति ही हमारा लक्ष्य है। सत्य की खोज ऐसी है की पूरी न हो तब तक चलती रहेगी। सत्य तो मौजूद ही है बस उसे उजागर करना है, अपनी चैतन्यता में।
पूनमचंद
८ मई २०२३
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