गुरू भमरी।
शिव लहरी तो सुना होगा परंतु गुरू भमरी नया लगेगा।
भमरी (भ्रमर/भौंरा) को देखा ही है। वह अपने कीट को पकड़कर बार बार डंक मारता रहता है जिसकी वजह से वह कीड़े की पहचान से बाहर निकलकर भौंरे की पहचान में आ जाए और उड़ने लगे। कीड़े को भी कोई विकल्प नहीं रहता। उसे भौंरे का चिंतन करना ही पड़ता है। एक दिन भौंरा बन ही जाता है।
वेदान्त के कीट-भ्रमर न्याय के अनुसार मनुष्य का मन जिसका चिंतन करता है, उसके समान ही हो जाता है। ''अमृतोस्मि'' कहकर अमृत का चिन्तन करनेवाला अमृतवृत्ति प्राप्त करता है, जबकि मुर्दे का चिन्तन करने वाला मृत बनता है।
कीटो भ्रमर संयोगे भ्रमरो भवित धुवम्। मानव: शिव योगेन शिवो भवति निश्चितम्॥
चयन अपना अपना।
कीड़ा या भौंरा?
जीव या शिव?😊
पूनमचंद
२३ जनवरी २०२३
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