Pages

Monday, January 23, 2023

साक्षात्कार के पल।

 साक्षात्कार के पल। 


कईं बार सुनते हैं फला फला महात्मा को साक्षात्कार इस दिन इस वक्त हुआ। 


ब्रह्म/आत्म ज्ञान शब्दों से, ब्रह्म ज्ञान अनुभव से और ब्रह्म ज्ञान में पूर्ण निष्ठा को ठीक ठीक समझ लेना चाहिए। 


जो नहीं हो उसका ज्ञान हो जाए तब तो बात बनती है तारीख़, समय, पल की। परंतु जो है उसके जानने का कहाँ से लायेंगे समय और तारीख़? 


मैं अब मुक्त हुआ या मुक्त हुई ऐसा कैसे? 


जो मुक्त है/हूँ, निराकार है, निरंजन है, निर्विकार है, निर्गुण है, निर्विशेष है/हूँ, है, उसकी भला कैसी मुक्ति? 


बस ग़लत पहचान के डिब्बे से निकलकर, सही पहचान के डिब्बे में बैठक लेनी है। बस इतनी ही तो देर है। 


फिर पता चलेगा कि तीनों शरीरों से, तीनों अवस्थाओं से, त्रिविध ताप से मेरा न कुछ बनना है न बिगड़ना है। 


दुःख का कारण ग़लत पहचान है। शरीर की, मन की, बुद्धि की, विशेष की पहचान। 


ग़लत छोड़ दिया, सब सही हो गया। 


जो है सो है। द्वंद्वातीत, कालातीत, विमल, अचल। 


कैसी घड़ी साक्षात्कार की? निष्ठा की, दृढ़ता हो जाने की घड़ी बता सकते हो। पहचाने और स्थितप्रज्ञ बनें। 


पूनमचंद 

२३ जनवरी २०२३

No comments:

Post a Comment