पुनर्जन्म
“तीन धर्म है पश्चिम के यहूदी, ईसाइयत, इसलाम, जिनका पूनर्जन्म के सिद्धांत पर नकारात्मक रूख रहा है। वे कहते है कि यह सच नहीं है। यह एक नकारात्मक विश्वास है। इन तीनों धर्मों के समानांतर—हिंदू, बौद्ध और जैन, तीन धर्म है जिनका सकारात्मक दृष्टिकोण है। वे कहते है, पुनर्जन्म एक वास्तविकता है। किंतु वह भी एक विश्वास है; एक सकारात्मक विश्वास। उसमें भी बौद्ध धर्म स्पष्ट रूप से आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म की बात नहीं करता।
पुनर्जन्म की जब भी बात आती है, ऐसा लगता है। सब पतली गली पकड़ किनारे हो जाते है। या तो तर्क से समझाने की कोशिश करेंगे या तो शास्त्र को दिखाकर। परंतु यकीनन जैसे अपना अपरोक्ष अनुभव है वह पुनर्जन्म की धारा को पकड़ नहीं पाता है।
पुनर्जन्म नहीं होता, यह मानना तो एकदम सरल है, परंतु वह भी रूह को ज़िन्दा रखते है अपने कर्मो का हिसाब देने। स्वर्ग या नर्क मिलने के बाद रूह का क्या हुआ कोई नहीं बताता।
हिन्दुओं ने एक बीच का रास्ता रखा है, बिना न्याय के इंतज़ार में बैठे रहने की बजाय कर्मो के फल स्वरूप चक्कर काटते रहने का, जब तक स्वर्ग नर्क या मुक्ति न मिले। स्वर्ग नर्क भी सीमित होता है, फिर चक्कर। जब तक मुक्ति नहीं मिलती तब तक रूह घूमती रहती है।
ऊर्जा का स्वरूप रूपांतरण होना है। पंच तत्व तो मिल जायेंगे अपने अपने स्रोत में पर जो ज्ञान सत्ता या भान सत्ता हम आपमें बनी रही है क्या वह जैसे दीया बुझा, बुझ जाती है? या फिर अपनी एक अलग पहचान लिए क़यामत तक सो जाती है या दूसरे जन्म लेकर भटकती रहती है, यह प्रश्न का समाधान नहीं हुआ। जिसने भी दिया या तो सबूत नहीं दिया या तो वहाँ जाकर चुप हो गया अथवा डायवर्ट कर गया।
अगर फिर पैदा होना ही नहीं फिर प्रधानमंत्री बने या चपरासी, अमीर पैदा हुए चाहे गरीब क्या फ़र्क़ पड़ता है। बस वक्त ही तो गुज़ारना है। चाहे सोने के बर्तन में खाये या चाहे अल्युमीनियम।
कर्म का सिद्धांत कुछ को depressed करता है लेकिन बहुमत को जीवन के प्रति सक्रिय रखता है। जहां पुनर्जन्म नहीं है वहाँ भी स्वर्ग और नर्क की व्यवस्था दिखाकर बात खड़ी ही रखी है।
मनुष्य का मन ही है जो उसे बांधे रखा है। चाहे इस तरफ़ या उस तरफ़। एक वर्ग ज़रूर बन रहा है जो वर्तमान गुणवत्ता युक्त जीवन के प्रति कर्तव्यनिष्ठ है।
जब सब शिव हो गया फिर कौनसा भेद और कौनसा चक्कर। भेद में रहे तो गये चक्कर में और अभेद हुए तो सिर्फ़ एक। उस एक पर ही ठहरना है। यहाँ कोई दूजा नहीं।
पूनमचंद
२८ अक्टूबर २०२२
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