Monday, December 26, 2022

सफ़रनामा।

 सफ़रनामा। 


अद्भुत है यह सफ़र। सब ने बताया कि कुछ है इसलिए कुछ कर्म चाहिए। साधन चतुष्टयः, विवेक वैराग्य, षट्संपत्ति (शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान) और मुमुक्षता। संसारी संसारी कर्म करेगा और साधक साधना कर्म। 


लेकिन साधक को यह कर्म करके पहुँचना कहाँ है? जहां वह आज भी है। 


यह कैसा आश्चर्य? जहां है वहाँ जाने कैसा कर्म? मानने का कर्म। कैसे मानोगे कि हम ही ब्रह्म है। हम ही शिव है। 


मैं ज़िले में था तब एक विस्तार के कुछ लोग रात में जा रही गाड़ियों को रास्ते में कील ठोककर रोकते थे, और प्रवासी को उतारकर, मारकर लूटते थे। कुछ लोग बिना मार खाये सबकुछ दे देना चाहते थे फिर भी लूटेरे मारते थे ज़रूर। किसी ने पूछा कि भाई यह अपना सबकुछ वैसे ही दे रहे है फिर उन्हें पीड़ा काहे को देते हो? जवाब मिला, हम मुफ़्त का नहीं खाते। परिश्रम करके ही खाते है।  इसलिए मारने का परिश्रम नहीं छोड़ सकते। 


कुछ ऐसी ही बात हो रही है। बिना परिश्रम हम भी मानेंगे नहीं और इसलिए पापड़ बेलेंगे ज़रूर। अज्ञान की पट्टी जो हटानी है। जो बंधा है (मन) उसे मुक्त जो कराना है। हमारे मन को यक़ीन कराना है कि वह तुम्हीं हो। लेकिन जब तक ‘मैं’ विशेष खड़ा तब तक उस निर्विशेष का नज़ारा कहाँ?


स्वामी रामसुखदासजी ने मुझे आगाह किया था। उन्होंने कहा था “मैंने ७२ साल गँवायें इसकी व्याख्या और विवेचन करने पर यह नही माना कि सब कह रहे हैं कि यह गंगा है तो बस मानकर उसमें डूबकी लगा दूँ। बस व्याख्या करता रहा, गंगा है तो क्यों गंगा कहते है, कैसे उद्गम हुआ, कैसे पवित्र करेगी, इत्यादि। बस मानना था और उसके निर्मल जल को अनुभूत करना था। आप ऐसा मत करना।”


हम सब ब्रह्म/शिव है तो अब और इसी घड़ी है। अगर नहीं है तो फिर नहीं होना है। पापड़ बेलते बेलते इसी पड़ाव पर आना है। अगर आ गये तो इसी घड़ी हो गया। जो मुक्त है उस शिव को बंधन नहीं और इसलिए मुक्ति भी नहीं। और जो बंधा है शरीर और मन वह मुक्त होगा अपने बंधनों से ज्ञानगंगा के सहारे। 


चलते रहो या रूक जाओ।बात तो यहीं पर अटकनी है कि हम ही ब्रह्म है और हम ही शिव है। 


पूनमचंद 

२६ दिसंबर २०२२

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