कौन है आप?
अमिता, अनिता, मनीषा, चित्रा या पुष्पा?
सुरेश, राधेश्याम, जगदीश, रविकान्त या शशि ?
इक़बाल या मुहम्मद?
संतोष, विलीस, हेकटर या शीला?
गुरदीप, जगमोहन, गुरप्रीत या इन्द्रजीत?
यह तो आप के नाम है जो आपको पैदा होने के बाद दिये गये।
आप कहेंगे पुरुष या स्त्री है हम। पर यह तो शरीर के आकार है।
आप कहेंगे हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सीख है हम। पर यह तो मज़हब के नाम है जो माता-पिता की मान्यता से चले आये है।
आप कहेंगे इन्सान है हम। पर यह तो अन्य जीवों की सापेक्ष में आपकी शारीरिक पहचान है?
फिर जो हिन्दू होगा कहेगा, मैं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र हूँ। पर यह तो जातिवाचक नाम है जो आपका शरीर जिस परिवार में जन्मा उसकी पहचान लिए है।
आप कौन?
चेतना का अनुभव किसे नहीं? जब वह नहीं रहती हम मुर्दे को नहीं रखते। पूरी की पूरी पहचान मुर्दा बन जाती है। कौन है यह चैतन्य? कहाँ से आया? कहाँ गया? बस यही खोज में सारे के सारे दर्शन समाहित है।
हिन्दुओं में जिस किसी ने इसको समझने की कोशिश की, जाना और शब्दों से इसकी व्याख्या की वह ब्राह्मण कहलाये। ब्राह्मण ज्ञानी का नाम है, व्याख्याता का नाम है, जो उस चैतन्य पद की व्याख्या करता है। इसलिए तो उनके रचे व्याख्या ग्रंथों को ब्राह्मण कहा गया।
आश्चर्य तो यह है कि दसवाँ, अपने से अलग नौ को गिन रहा है और उस नौ में अपने को खोज रहा है, पर खुद पर उसका ध्यान नहीं है। जिस दिन खोजनेवाले ने अपनी ओर नज़र कर ली, मानो पहचान हो गई। फिर वह आसपास नज़र करेगा, चारों ओर उसे वही एक ही रोशनी, एक ही दरिया नज़र आयेगा। एक चैतन्य के सिवा यहाँ दूसरा कोई है ही नहीं। एक ही बिजली जैसे अनेक उपकरणों में टिमटिमा रही है। एक दूसरे के सामने जैसे विनोद उपहास कर रही है। पूरी नौटंकी लगेगी। एक ही पहचान में सब समा जायेगा। सर्वात्म भाव जग जायेगा। पूर्ण अहंता प्रकट हो उठेगी। और आप अमर हो जायेंगे। अमरता जीतनी नहीं है, आप अमर ही हो। बस भ्रांति पहचान से बाहर आये और स्व-स्वरूप में विश्रांति पाये।
आप अमर है।
अमरजीत का अमर और आप का अमर एक है। 😊
पूनमचंद
३० मई २०२२
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