होश में रहो।
अब रहा न आना जाना, जिधर देखता हूँ सनम रूबरू है। गुलिस्ताँ में जाके हर गुल को देखा, तेरी ही रंगत तेरी ही बू है। रही न कुछ असर न कुछ आरज़ू है, जिधर देखता हूँ सनम रूबरू है।
यह कश्मीर शैव दर्शन है, जहां प्रेम ही प्रमुख है।यह जगत शिवलीला है, शिव शक्ति का मिलन, प्रेमालय। यहाँ शक्ति विश्व बनी है और शिव उसका धारक। जैसे आग और आग की लपटें।
सकल से अकल की यात्रा में मायावरण पार कर आध्यात्मिक यात्रा शुद्ध बुद्धि से आगे बढ़ती है। अहम अहम, इदम इदम मंत्र है। I am, I am; this is this. एकरूपता है भेदभाव नहीं। फिर ईश्वर पड़ाव आता है जहां जो देख रहा हूँ वह मैं हूँ यह दृष्टि आती है। The whole is in I. ग्राहक ही ग्राह्य, भोक्ता ही भोग्य बन गया। शिव ही पार्वती। इदम अहम मंत्र है इस पड़ाव का। फिर आता है सदाशिव पद। अहम इदम। मैं ही इदम (विश्व)। एक हो गया। शिव शक्ति का मिलन हो गया। प्रेम हो गया। In love you rise but this is rising in love.
कैसे पहुँचें? आण्वोपाय, शाक्तोपाय और सांभवोपाय से। कुछ साधन समझे।
प्राण सेतु है पहुँचने का। अंदर आ रहा है वह शीतल चंद्र और बाहर जा रहा उष्ण सूर्य की द्वादश अंगुल पर हो रही संधि पर ठहरो। वही गुरू चरण है, गुरू पादुका है। उसकी पूजा करो। उस मध्य में अवस्थित रहो। उसके भूमध्य कंठ और ह्रदय का ध्यान रखो।स्वस्थ (स्व में स्थित) बनो। वहाँ परमानंद है।
नींद भी साधन बन सकती है। जाग्रत के अंत पर नींद शुरू होती है। एक बाल जितना पतला एक संधि बिंदु है। उस मध्य पर ठहरो उस पर जागरण रखो। परमानंद पाओगे।
यहाँ Yoga in action है। न संन्यास लेना है न भिख्खु बनना है। पलायन नहीं है। यहाँ सिर्फ़ चक्षु आवृत करना नहीं है, अपितु खुली आँखों से भी देखना है। thoughtless seeing. seeing without conditioning, seeing without justification, seeing without identification. शिव ही शिव नज़र न आये तब तक। one pointed ध्यान। बैठते जागते सोते काम करते.. एक ही निदिध्यासन। शिव नहीं तो जीव कहाँ? उसके संगीत ताल और लय को पहचानना है। जैसे राजस्थानी नर्तकी शिर पर कुंभ लिये ताल और लयबद्ध संगीत के साथ नृत्य करती है, अंग प्रदर्शन करती है, आसपास गड्ढे और आग भी है फिर भी नृत्य में रत उसकी बुद्धि उस कुंभ की रक्षा में लगी रहती है, कुंभ को गिरने नहीं देती। वैसे ही संसार में रहते, स्व (God) में ध्यान रखने वाला योगी है।योगी बनो। बस ब्रह्म-शिव के अवलोकन का चस्का लगा दो। शिव को देखने का, जानने के नशे को छोड़ो मत। यह नशा होश में लाता है। शिवत्व देता है। प्रेमालय में प्रवेश है।
शिवदर्शन का नशा इतना करो कि फिर गा उठो।
अब रहा न आना जाना, जिधर देखता हूँ सनम रूबरू है। गुलिस्ताँ में जाके हर गुल को देखा, तेरी ही रंगत तेरी ही बू है। रही न कुछ असर न कुछ आरज़ू है, जिधर देखता हूँ सनम रूबरू है।
पूनमचंद
२१ अप्रैल २०२२
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