बस देखो।
ह्रद सरोवर आज ज्यूँ गोता लागा,
दृष्टा अगोचर स्वर्ण स्तंभ लाधा;
देखत देखत हुआ व्याप्त,
शरीर दिवारें ढही जिस क्षण।।
अंदर बाहर ओझल हुआ,
मध्य विकासे विचार गये।
चैतन्य संविद एक हो रहा,
सर्वसमावेश शिव सर्वेश।।
पूनमचंद
१२ अप्रैल २०२२
A refreshing look at Life by Dr. Punamchand Parmar [IAS:1985]
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