तीन में शिव।
हर दिन हमें तीनों स्थिति का रूबरू अनुभव हो रहा है। जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। जाग्रत में शिवलीला का साक्षात्कार, स्वप्न में हमारी अतृप्ति का संप्रेषण और सुषुप्ति में शिवस्वरूप में विश्राम। हर दिन सुषुप्ति में उस गाढ़ प्रशांति का अनुभव हो रहा है जहां हृद है, जहां हम अपने साधन शरीर, इन्द्रियां, मन, बुद्धि और अहंकार को भूल उस पूर्ण में विश्रांत हो जाते हैं। पूर्ण शांति का अनुभव होता है। वहाँ अगर जागृति पा ली और संकल्प हुआ तो हक़ीक़त बन जाती है। वह समाधि जैसे अंदर बनती है अगर बाहर की प्रवृत्तियों के बीच भी बनी रहे, स्वरूप का भान चला न जाय, तो शिव पद दूर कहाँ? पर यहाँ एक मुश्किल है। व्यष्टि हम को शिवत्व समजने से भ्रमणा बढ़ेगी। सब शिव है, बाह्य जगत् जिसमें मैं भी हूँ वह शिव की शक्ति का विलास है और उसके साथ एकत्व और सर्व समावेश का भाव आ जाय, हम अलग नहीं पर एक हो जाय और साथ साथ निजी स्वातंत्र्य बना रहे, वहाँ पहुँचना है। अज्ञान मिटाने की यात्रा है। ज्ञान तो है ही हम समझ नहीं पा रहे है। मन के संकल्प विकल्पों से बुद्धि लगाकर समझने की कौशिक कर रहे है। पर इन्द्रियातीत वह कैसे हाथ लगेगा। जब तक खुद शिव न बन जाओ।
पूनमचंद
२५ अप्रैल २०२२
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