चैतन्य
चैतन्य एक है, रसमय है। अहम् और इदम एक ही है परंतु शिवलीला के लिए अद्वैत द्वैत बना है। दीख रहे द्वैत का अद्वैत समझ लेना है। जान लेना है।
चैतन्य की व्यापकता समझाने आकाश का और प्रकाशन समझाने सूर्य का उदाहरण दिया जाता है। पंच तत्व के क्रम में जैसे सर्व व्यापक आकाश ही संकोचन से अनुक्रम से वायु, अग्नि, जल और भूमि बना है, भूमि में भी घनत्व की भिन्नता से हल्के पदार्थ से भारी पदार्थ-धातु बने है वैसे ही चिति संकोचन से घनीभूत होकर चित्त बनी है। जैसे सूर्य चारों और प्रकाश बन है वैसे ही चैतन्य ज्ञान-बोधरूप होकर सर्वत्र मौजूद है। सूर्य की मर्यादा है। एक जगह रहकर प्रकाश फैला रहा है। चिति सर्वव्यापक है। इसलिए हर जागरण केन्द्र बिंदु है। चिति का मध्य है।
यह घनीभूतता की कक्षा हर जीव में अलग-अलग होगी और इसके आधार पर स्व में स्थित रहने की क्रिया और उपायों में भिन्नता रहेगी। आयु, आरोग्य, वातावरण और संगत का फ़र्क़ भी रहेगा। इसलिए अपना उपाय खोजना है और उसके नियमित उपाय से स्व-स्थ रहना है, स्व-रूप की पहचान कर उजागर करना है। तमस् (अज्ञान) में उजाला (ज्ञान) बढ़ाना है। मृत्यु वाले (स्थूल शरीर और पुर्यष्टक) को छोड़ अमृत स्पन्द में अचल अटल आसन ज़माना है। बाक़ी सब शिव पर छोड़ समता और सामरस्य से वर्तमान जीना है।
पूनमचंद
४ मई २०२२
5.07 AM
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