अग्नि (ज्ञान) पथ।
भोर भयों उठ जाग मनवा, चल रे ज्ञान पथ;
शिवत्व मंज़िल को पाना, रूक नहीं अब एक पल।
सकल से निकल, अकल पद लक्ष्य;
निर्मल होता आगे बढ़, तु ही तुझमें ठहर।
पशुता से पशुपति बनना, पथ तेरा अपने अंदर;
उत्तिष्ठ जाग्रत उपर उठ, इदम से पार अहम निगल।
सकल से प्रलयाकल डग भर, प्रमेय से आगे निर्मल पथ चल। सुषुप्ति ना बांधे तुझको, अबोध में मत रे फँस।
विज्ञानमल से पाँव पसार, मंत्र प्रमात्री में प्रवेश कर; अहम अहम इदम इदम, जाग्रत अपने घर में बस।
मंत्र नहीं तुं मंत्रेश्वर, गहरे सुन अनाहत नाद;
इदम को अहम जान, खुद ईश्वर खुद संसार।
अहम अहम मंत्र महेश्वर, अग्नि कुंण्डली मरीच हवन; शिव शक्ति सामरस्य कर; उन्मनि से आगे बढ़।
प्रमाता तु स्वयं एक, परमेश्वर परम अद्वैत;
अहम में कर विराम, अकल घर शिव संपूर्ण।
भोर भयों उठ जाग मनवा, चल रे ज्ञान पथ;
शिवत्व मंज़िल को पाना, रूक नहीं अब एक पल।
पूनमचंद
१४ सितंबर २०२१
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