Sunday, November 21, 2021

मध्य के विकास में लाभ है।

 मध्य के विकास में लाभ है। 


मध्यविकासाच्चिदानंदलाभ:।।१७।।


मध्य विकास से चिदानंद लाभ है। प्रत्यभिज्ञा ह्रदयं का यह ह्रदय सूत्र है। बीमारी की चर्चा हुई अब बीमारी का इलाज चल रहा है। सूत्र १३, १४, १५ में चित्त के अंतर्मुखी भाव से चिति के ज्ञान को उजागर करने की बात कही थी, जिसमें तीन संकोच वाक् संकोच, करण संकोच और प्राण संकोच को अनुक्रम से गुरू मंत्र, अष्ट देवियों के विस्तार और प्राण-अपान के कुंभक से सुषुम्ना द्वार में प्रवेश कर कुंडलिनी मार्ग से अपने चिति स्वरूप बल (उन्मेष) को प्राप्त कर, विश्व को अपने स्वरूप से अभिन्न रूप में भासित-प्रकाशित करना बताया है। फिर सूत्र १६ में बताया कि दृढ़ता पूर्वक चेत्य और चेतन की एकत्व से चिदानंद लाभ पाकर जीवन्मुक्ति अवस्था पानी है। पहले बल लाभ, फिर चिदानंद लाभ। 


अब यहाँ इस सूत्र में बताया मध्य विकास से चिदानंद लाभ होगा। 


क्या है मध्य? माँ भगवती चिति ही मध्य है। केन्द्र है। ह्रदय है। अपनी स्वतंत्रता और स्वेच्छा से माया आवरण से अपने स्वरूप के गोपन करके मेरे अंतरतम केन्द्र में, ह्रदय में चित्त स्वरूप बनकर विद्यमान है उसे विकसित करना है, दीप्त करना है, स्वरूप में प्रकाशन करना है। 


एक तरफ़ माँ भगवती चिति, जिसका मूर्त रूप यह सारा विश्व; दूसरी तरफ़ मुझ जीव चित्त का बना मेरा संसार। दोनों की संधि मध्य है। माया रूपी उपले और राख से ढके आवरण को हटाना है। जैसे चेतन पद से उतरकर चित्त बना (सूत्र ५), अब उसी सीडी को पकड़कर आरोहण क्रम से गुरू युक्ति लगाकर उतरे हुए प्राण से सीडी चढ़ना है। मेरी भींती पर ध्यान देना है जहां सब भेद प्रमेय, वृत्तियों का उदय अस्त हो रहा है, जहां सब प्रकाशित हो रहा है। जो हम सब की अंतरतम स्थिति है। भींती न रही तो कहाँ मैं और तुम? उस मध्य ह्रदय को विकसित करना है, दीप्त करना है, उसका विस्फार करना है। 


चिति की चित्त बनने की यात्रा प्राण से हुई थी। प्राणशक्ति के संकोच से बुद्धि-अहंकार-मन-स्थूल शरीर से बनी मेरी मनुष्य कृति अभी प्रवृत्त है।उसमें स्थित नाड़ी जाल समूह में तीन प्रमुख नाड़ियाँ इड़ा पिंगला और सुषुम्ना है। इड़ा और पिंगला में  चल रहे प्राण अपान को समान कर सुषुम्ना में प्रवेश कर लेना है। जैसे पलास पत्र का मध्य तंतु पत्र के तंतुजाल से जुड़ा है, वैसे ही ७२००० नाड़ियों के समूह का मध्य स्रोत सुषुम्ना है। जहां से चित्त वृत्तियों का उदय और लय होता है। यह सुषुम्ना जो चिति की प्राण शक्ति से जुड़ी है, और वज्राणि-चित्रिणी-ब्रह्म रूप में स्थित है उसकी मध्य की ब्रह्म नाड़ी का अनुसंधान करना है। उस नाड़ी में मूलाधार मे सोयी पड़ी कुंडलिनी शक्ति को उर्ध्व कर, प्रवृत्त कर सहस्रार से जोड़नी है, व्यान की व्याप्ति करनी है। सुषुम्ना के प्रकाश स्तंभ या चमकती कमल दंड लकीर के प्रकाश से आगे बढ़ते बढ़ते सहस्रार पहुँचना है।मेरे शरीर के मध्य रूपी ब्रह्म नाड़ी सुषुम्ना का विकास करना है। 


मेरे मध्य का विकास होगा, जो चिदानंद लाभ करायेगा। 


लक्ष्य क्या है? 


निरपेक्ष बनना है और वैश्विक होना है। सर्वाकार सामान्य दृष्टि प्राप्त करनी है। क्रियाओं के चक्करों के बीज चित्त को जागरूक रखना है अपने निरपेक्ष अभ्यास में। 


मुझे प्रमेयों के भेदों के बीच, दो विचारों के बीच, प्राण अपान के बीच रहे अवकाश को पहचानना है और उसके प्रति जागरूक होकर अपनी भींती की पहचान बराबर कर लेनी है। मैं ही सब में अवस्थित होकर मैं बन मुझे ही देख रहा हूँ, लेकिन बाहर की घटनाओं से क्यूँ क्षोभ हो रहा है उस का निरीक्षण बनाये रखना है। सापेक्ष या निरपेक्ष मेरा ही दर्शन है सब। गुरू कृपा का स्वीकार करना है और निरपेक्ष में स्थित होना है। व्युत्थान और समाधि के पेंडुलम को तेज चलाकर आख़िर में स्थिर समाधि अवस्था पाना है, जहां फिर एक तरफ़ इन्द्रियों का व्यवहार और दूसरी तरफ़ मैं अपने ह्रदय मध्य में स्थित चिति भैरव।


मैं बनारसीयों की तरह दो गाल में दो पान ठूँस कर पानरस का पान तो नहीं कर सकता, लेकिन चिद् से जुड़ा हुआ हूँ और चिद् रस कुंभ अहर्निश बह रहा है, उसे पहचान उस चिद् रस का आनंद लूँ , और क्रमश: अथवा गुरू या शिव अनुग्रह से अक्रम से चिदानंद को प्राप्त करूँ। मुझे प्राप्त है उसकी पहचान करूँ, उसमें रमण करूँ। अपनी चिदानंद मस्ती में आनंद सृष्टि। 


चिदानंद लाभ। 


मध्यविकासाच्चिदानंदलाभ:।।१७।।


है देवी भगवती, माँ चिति, मेरे मन के क्षोभ हरो, विकल्पों का क्षय करो और मेरे मध्य का, मेरे ह्रदय का विकास करो, जिससे मैं और मुझमें प्रकाशित यह सारे विश्व से मेरा ऐक्य हो। मेरी प्रत्यभिज्ञा हो। जीवन मुक्ति का मुझे पता नहीं, लेकिन मेरा दैत, द्वंद्व सब मीट जायें और मैं आप रूप प्राप्त करूँ। 


शिवोहम्। पूर्णोहम्। 


पूनमचंद 

१८ नवम्बर २०२१

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