Sunday, November 21, 2021

पूर्णोहम।

 पूर्णोहम। 


पूर्णोहम! शिवोहम, चैतन्य अखंड अद्वैत प्रकाश;

विमर्शमय मैं स्वतंत्र, स्वात्म नित्य अपरिमित बोध। 


खंड अखंड सबमें व्याप्त, जड़ नहीं मैं ज़िन्दा शाश्वत। शव नहीं मैं चैतन्य दीया, सबका प्रकाश सबका प्रकाशक। 


मैं चिन्मय नित्य प्रकाश, विमर्श स्वतंत्र शिव सद्रूप;

स्व में विस्तार, स्व संकोच, सकल अकल मेरा भासन।


संयोजन वियोजन जाल परख, भेदाभेद नाटक बंद कर; 

अनुसंधान से एक कर, पराद्वैत में स्थापित कर। 


चेतन परदा चेतन चलचित्र, किसे करेगा शत्रु किसे मित्र?

स्वात्म सिद्धि निर्मल पथ चल, प्रकाश विमर्श में डूबा कर। 


पूरन होगा बोध सामरस्य, पूर्ण ज्ञान पूर्ण क्रिया;

होगा तब खुदसे, स्वात्म अखंड शिव साक्षात्कार। 


पूर्णोहम! शिवोहम, चैतन्य अद्वैत अखंड प्रकाश;

विमर्शमय मैं स्वतंत्र, स्वात्म नित्य अपरिमित बोध। 


पूनमचंद 

१६ सितंबर २०२१

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.