पंच कंचुक।
शिव शब्द से इ की मात्रा अगर हटा लें तब शिव शव हो जायेगा। बिना विमर्श प्रकाश का स्वरूप कहाँ? परमशिव का प्रकाश शिव है और विमर्श चिति। चिति शिव स्वरूप होने से पंच शक्ति धारण किए है; चिद्, आनंद, इच्छा, ज्ञान और क्रिया। अनुक्रम से व्यापकता, नित्यत्व, पूर्णत्व, सर्वज्ञत्व, सर्वकतृत्व। यह चिति विश्वरूप से उन्मीलन होने के लिए अपनी स्वतंत्र इच्छा से संकोच ग्रहण करती है। प्रकाश की छाया (विमर्श) बन नानात्व रूप धारण कर प्रमेय और प्रमाता की सृष्टि का सृजन, स्थिति और संहार करती रहती है। संकोच से प्रमाता त्रिमल के आवरण से ढक जाता है और खुद को अपूर्ण, भेदभाव और कर्म-फल की जाल में बाँध देता है। अपरिमित से परिमित हो जाता है। चिति संकोच से, माया से, अपना स्वरूप गोपन कर विश्व निर्माणकारी होती है। पंचशक्ति का संकोच पंच कंचुक बन जाता है। अनुक्रम से सर्वकतृत्व कला (अल्प कर्तृत्व); सर्वज्ञत्व विधा (सीमित ज्ञान); पूर्णत्व राग (अतृप्ति-भिन्न विषयों की चाह); नित्यत्व काल (भूत-वर्तमान-भविष्य, जन्म-मरण); और व्यापकता नियति (देश-कारण बोध) बन जाती है।
गोपन भेद है, बंध है; अगोपन अभेद, मुक्ति है। इमली का पेड़ बीज-किंचूक में छिपा है। किंचूक का योग्य भूमि में रोपण हो जायें तो इमली का पेड़ प्रकट हो जाता है। गोपनीय स्वरूप उजागर हो जाता है। वैसे ही साधक गुरू मार्गदर्शन में सर्वत्र शिवदर्शन करके अपनी प्रत्यभिज्ञा कर लेता है। प्रत्यभिज्ञा गोपन से अगोपन की यात्रा है। साधना है।
शिवोहम्। पूर्णोहम्।
पूनमचंद
१५ नवम्बर २०२१
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