Sunday, November 21, 2021

तीन लाभ एक प्राप्ति।

 तीन लाभ, एक प्राप्ति। 


तीन बार लाभ आये। बल लाभ, चिदानंद लाभ और समाधि लाभ। चैतन्य का जो संकोच था जिससे पंचकृत्य सीमित हुए थे वह असीमित होने शुरू हुए। पंचशक्ति का संकोच दूर होने लगा। अंतर्मुख भाव से और मध्य-ह्रदय विकास से चिति का परिज्ञान होने लगा। 


चिति आनंद स्वरूपा है इसलिए चिदानंद लाभ शुरू हो गया। प्रमाता की भूमिका बदलने लगी। मलावरोध दूर होते ही सम्यक दृष्टि से सर्व समावेश होने लगा। आँख बंद की और अंदर गये तो समाधि ऐसा ही नहीं, बाहर भी समाधि। अंदर जाओ तो समाधि और बाहर व्युत्थान ऐसा नहीं, नित्य बोधि समाधि लग गई, जिसका अब अस्त नहीं होना है। प्रकाश और आनंदका सामरस्य हुआ। मदमस्त हाथी की तरह चैतन्य का झुला लग गया। अंदर जायें तो चिद्घन प्रशांति - सदाशिव, और बाहर आये तो व्युत्थान (सामान्य चेतना) में सर्वरूप सर्वत्र मेरा प्रकाश। अंतर्लक्षो बहिर्दृष्टि। अहंता इदंता ऐक्य। जड़ चेतन सब ज्ञानरूप। भेदों के बीच संविद एकता। स्वयं प्रकाश चेतना में द्वैत कहाँ? 


सब बीज को चिद् अग्नि में स्वाहा करो और समाधि बीज लगाओ। यही सच्ची खेती है। संविद को पाओ। गुरू मंत्र से, शिव अनुग्रह से। श्रद्धा और विश्वास से। भीतर है वह। गंगा (इड़ा) से अंदर और यमुना (पिंगला) से बाहर के मंथन से सूकी नदी सरस्वती (सुषुम्ना) में मधुरस भरना है। 


समाधिसंस्कारवति व्युत्थाने भूयो भूयश्चिदैक्यामर्शान्नित्योदितसमाधिलाभ।।१९।।


नित्योदित (जिसका अस्त नहीं) समाधि लाभ होगा। मनुष्य अभिमंत्रित हो जायेगा, चैतन्य महामंत्र वीर्य से। देवता बनेगा। संविद देवता। चक्रेश्वर देवता। सर्व शक्ति (शक्ति समूह), शिवत्व की प्राप्ति होगी। पूर्णाहंता। प्रकाशानंद। पूर्णानंद। विश्रांति। निरपेक्ष। नित्योदित। 


चिति चित्त बनी थी, फिर से चिति। चिद् ऐक्य हो गया। बनना कुछ नहीं, स्वरूप अज्ञान को मिटाना है। जो प्राप्त है उसे ही पाना है, उजागर करना है। मायीय चश्मे हटाकर सीधा देखना है। बिना चश्मे की दृष्टि। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। 


तदा प्रकाशानन्दसारमहामन्त्रवीर्यात्मकपूर्णहन्तावेशात्सदासर्वसर्गसंहारकारिनिजसंविद्देवताचक्रेश्वरताप्राप्तिर्भवति शिवम्।।२०।।


सब शिव का ही स्वरूप है। एक ही है, दूजा कोई नहीं। 



शिवोहम् शिवोहम्। 🙏🙏🙏


🕉 नम: शिवाय। 


पूनमचंद 

१९ नवम्बर २०२१

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