मातृका प्रवेश।
ज्यों न्यग्रोध बीज वटवृक्ष पसारा;
वाक् विश्व फैल, माटी प्रकाशा।
अ कार से स कार चराचर संसार;
परम परा का ह्रदय बीज विस्तार।
३१ सकार ३ अकार, वर्ण मातृका संसार;
शिव शक्ति का सच्चिदानंद पसार।
अ कार से आरूढ हुआ, ह कार भेद सृष्टि फैलाया।
परम शिव में उदय हुआ, परम शिव विश्रांत हुआ।
ह्रदय प्राण ब्रह्मरंध्र मिला, परावाक संधान कर;
घटीयंत्र सम भर ले अरघट, सरण रस अमृत पान कर।
जप ले मंत्र छांदस, बिना गति लय ताल विग्रह ;
त्रि अंड अनुसंधान कर, अनुत्तर परा प्रवेश कर।
सद् अंश मिले चिद् अंश से, चिद् अंश माोद मांय;
मोद निरंशे विलुप्त हुए, परम शिव प्रकट थाय।
पूनमचंद
२३ सितंबर २०२१
0 comments:
Post a Comment