जय माता दी।
प्रमाता प्रमेय और प्रमाण; ज्ञाता ज्ञेय और ज्ञान के त्रिशूल को शुद्ध संविद में विसर्जित करने भवानी (भैरव का ह्रदय) की कृपा और भैरव (स्व बोध) का अनुग्रह ज़रूरी है।
परा, परापरा और अपरा के इच्छा, ज्ञान और क्रिया के भेद को परख त्रिमल से मुक्त सप्त भुवन पर पहुँच मूल गोत्र, निर्मल जगदानंद, पूर्ण बोध, शिव स्वरूप में अवशिष्ट होना लक्ष्य है।
शरीर भाव से सर्व भाव की और। पूर्णोहम। 🙏
पूनमचंद
१३ सितंबर २०२१
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