त्रिगुणा
प्रकृति स्वयं त्रिगुणा है इसलिए समस्त जीवगण उसके गुणों से युक्त है। तीन गुण भिन्न-भिन्न अनुपात में रहने से हर व्यक्ति अपने कर्म और उसके फल भोगने की मानसिक अवस्था में अलग अलग नज़र आता है। उसके व्यक्तित्व और व्यवहार कि विविधता गुण प्रधानता पर निर्भर है। ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि विभाग के विश्लेषण से हर कोई, चार वर्गों से कोई एक वर्ग में अपनी पहचान कर सकता है, और वहीं से उसकी ऊर्ध्व अथवा अधोगति का मार्ग तय होता है। हर कोई अपने कर्म का मालिक है और अपने बुद्धि प्रकाश से अपना मार्गदाता है। इसलिए सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक मार्ग और उसके कर्मों का चयन कर के वह उसके फल को प्राप्त होता है।अपना मालिक और मार्गदाता खुद ही।
चार वर्ण गुण कर्म विभाजन है, जन्म नहीं। जिसमें सत्वगुण प्रधान, रजोगुण अल्प और तमोगुण न्यून हो वह ब्राह्मण वर्ण है। जिसमें रजोगुण प्रधान, सत्वगुण अल्प और तमोगुण न्यून है वह क्षत्रिय वर्ण है। जिसमें रजोगुण प्रधान, तमोगुण अल्प और सत्वगुण न्यून है वह वैश्य वर्ण है। जिसमें तमोगुण प्रधान है, रजोगुण अल्प है, सत्वगुण न्यून है वह शुद्र वर्ण है।
चारों वर्ण मिश्रण है प्रकृति के गुणों का, कोई शुद्ध नहीं। कर्ता में जिस गुण का आधिक्य वैसे कर्म और उसके फल।सत्व सुख, रजस दुख और अशांति, तमस् मोह और प्रमाद देता है।
मनुष्य अपना प्रदर्शक होने कि वजह से वह अपना विश्लेषण खुद कर आत्मनिरीक्षण कर अपने कल का मार्गदाता बन सकता है। गुण आधिक्य कर वह अपना कर्म पथ और उसके फल बदल सकता है।खेत
(क्षेत्र) अपना है, मनचाही खेती कर और फल को प्राप्त हो। स्वाध्याय, तप, साधना वह है जो ऊर्ध्व को पा ले और अध: को छोड़ दें। दुर्गुणों का त्याग और सद्गुणों की वृद्धि। त्रिगुणा माया संसार है।
प्रकाशक शुद्ध तत्व त्रिगुणातीत है। गुणातीत मनुष्य तो लाखों में कोई एक ही हो सकता है। स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा। खंड से अखंड की ओर। बाहर से अंदर की खोज। “असतो मा सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतम् गमय ॥”
पहचान कौन?
पूनमचंद
६ जनवरी २०२१
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