अत्ता हि अत्तनो नाथो।
हिन्दू धर्म में गुरू बीना ज्ञान संभव नहीं। वहीं बौद्ध धर्म ने मनुष्य अपना स्वामी स्वयं है घोषित कर आज़ादी का पैग़ाम दिया है।
श्रावस्ती जहां बुद्ध विहरते थे, एक निर्धन किसान खेत में हल चलाकर अपना जीवन चलाता था। बड़ा दुखी रहता था। बुद्ध को विहरते देख बुद्ध कि ज्योति उस पर पड़ी। सोचता होगा एक आदमी राज पाट छोड़ कितना शांत विहरता है। कोई दुख की छाया तक नहीं। उसने संन्यास ले लिया। लेकिन अपना हल-नंगल विहार के पास के एक वृक्ष पर टांग दिया। संन्यास जीवन से कुछ दिन प्रसन्न रहा फिर उदास हो गया। सोचा क्यूँ न वापस गृहस्थ हो जाऊँ। पहुँचा वृक्ष के पास। लेकिन थोड़ा सोचने पर अपनी मूढ़ता नज़र आई और फिर वापस विहार लौट आया। फिर जब उदासी आती वह वृक्ष के पास जाता, अपने हल-नंगल देखता और वापस चला आता। बार बार इस घटना को देख भिक्खुओं ने उसका नाम नंगलकुल रख दिया। लेकिन एक दिन जब वह हल के दर्शन कर वापस लौट रहा था तब अर्हत को प्राप्त हुआ। फिर कभी हल-नंगल के पास वापस न लौटा। भिक्खुओं ने जब पूछा तो कहा, जब तक आसक्ति रही अतीत से,
संसर्ग रहा तब तक गया। अब ज़ंजीर टूट गई। अब मुक्त हो गया। भिक्खुओं को लगा नंगलकुल झूठ बोल रहा है। जाकर भगवान को कहा, यह नंगलकुल जूठ बोल रहा है। बुद्ध ने करूणा से देखा और जवाब दिया, “मेरे पुत्र अपने आपको उपदेश दे प्रव्रजित होने के कृत्य को पूर्ण कर लिया। उसे जो पाना था, पा लिया और जो छोड़ना था, छोड़ दिया। वह निश्चय ही मुक्त हो गया है।”
बुद्ध ने दो सूत्र कहे।
अत्तना चोदयत्तानं पटिवासे अत्तमत्तना।
सो अत्तगुत्तो सतिमा सुखं भिक्खु विहाहिसि।
(जो आप ही अपने को प्रेरित करेगा, जो आप ही अपने को संलग्न करेगा, वह आत्म गुप्त, अपने द्वारा रक्षित, स्मृतिवान भिक्खु सुख से विहार करेगा।)
अत्ता हि अत्तनो नाथो अत्ता हि अत्तनो गति।
तस्मा सन्चमयत्तानं अस्सं भद्रं’व वणिजो।
(मनुष्य अपना स्वामी आप है। आप ही अपनी गति है। इसलिए अपने को संयमी बनावे, जैसे कि सुंदर घोड़े को बनिया संयत करता है।)
किसी दूसरे की कोई ज़रूरत नहीं अगर कोई अपने को जगाने में लग जाये। अपना स्वामी आप। अपनी गति आप। आत्म शरण बनो। अपने दीये स्वयं बनो। गुरू होगा तो भी पास पास तैरेगा, भरोसा देने कि वह तैरा है, तुम न डूबोंगे। तैरना तो खुद को है। गुरू एक भरोसा है। ख़ुद चल पड़े बुद्ध की तरह, आग बराबर लगी है, तो अपना स्वामी बन अपनी गति बन सकते हो। बुद्ध ने गुरू किये थे। उन्होंने बताईं सब साधना कि थी। आख़िर हार कर सब छोड़ दिया और उसी रात संबोधि को प्राप्त हुए, निर्वाण प्राप्त हुए।
नंगलकुल भी दीक्षित हुआ था बुद्ध से। लेकिन फिर अपनी मंज़िल पर चला खुद।जागरण बनायें रखा।अपनी आसक्ति की ज़ंजीर को खुद तोड़ अर्हत को प्राप्त हुआ। नींद गहरी हो तो जगाने वाला चाहिए। लेकिन कोई उठना न चाहे, उसे कौन जगायेंगा? अभीप्सा प्रगाढ़ हो, प्रबल प्यास हो, तो अपना स्वामी आप है। चित्त को सँभालना है। अकंप। दीये की लौ को स्थिर बनाये रखनी है। आख़िर पहुँचना तो है अपने मूल स्रोत में। वहाँ दो की जगह नहीं। परम एकांत। समाधि के तीन सूत्र है। एकांत, मौन और ध्यान।आँखें खुल गई को भीतर ही है कैलाश और काबा।
जीसस ने भी कहा था। माँगो और मिलेगा। खटखटाओ और द्वार खुलेंगे। खोजों और पाओगे। लेकिन मंज़िल पहुँचा भागता रहे तो चूक जायेगा।
अत्ता हि अत्तनो नाथो।
पूनमचंद
११ जनवरी २०२१
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