बुद्ध ब्राह्मण वह है ..
१) जो तृष्णा के स्रोत को काट दे। पराक्रम कर कामनाओं को दूर कर दे। संस्कार के क्षय को जानकर निर्वाण का साक्षात्कार कप ले।
२) भिक्खु के दो धर्मों शमथ और विपश्यना में पारंगत हो कर जो सभी बंधन/संयोग काट देता है।
३) जिसके पार अपार और पारापार नहीं है, जो निर्भय और अनासक्त है।
४) जो ध्यानी, निर्मल, आसनबद्ध, कृतकृत्य, आस्रव रहित है, जिसने उत्तमार्थ को पा लिया है।
५) ध्यानी होने से ब्राह्मण तपता है।
६) जिसने पाप को धोकर बहा दिया है। समता का आचरण करता है। अपने चित्त मलों को हटा दिया है।
७)वह प्रिय पदार्थों से मन हटा लेता है जहां जहां हिंसा से मन मुड़ता है।
८) जिसके मन वचन और कार्य से पाप नहीं होते और जो तीनों ही स्थानों में संवर-युक्त है।
९) जो सम्यकसम्बुद्ध द्वारा उपदिष्ट धर्म को जाने, उसे सत्कारपूर्वक नमस्कार करे।
१०) न जटा से, न गोत्र से और न जन्म से ब्राह्मण होता है, जिसमें सत्य और धर्म है, वही पवित्र और वही ब्राह्मण है।
११) हे दुर्बुद्धि! जटाओं से तेरा क्या बनेगा और मृगचर्म के पहनने से तेरा क्या? भीतर तो तेरा राग आदि मलों से परिपूर्ण है, बाहर क्या धोता है।
१२) जो चीवर को धारण करता है, जो दुबला पतला और नसों मढ़े शरीर वाला है, जो अकेला वन में ध्यानरत है, वह ब्राह्मण है।
१३) माता की योनि से उत्पन्न होने के कारण किसी को मैं ब्राह्मण नहीं कहता हूँ, वह तो केवल ‘भो वादी’ है, वह तो संग्रही है। ब्राह्मण वह है जो अपरिग्रही और त्यागी है।
१४) जो सारे बन्धनों को काटकर, तृष्णा से नहीं डरता है, उस राग संग और आसक्ति से विरत ब्राह्मण है।
१५) मुसीका, पगहा, नाथ और रस्सी को काटकर तथा अविद्या को फेंक, जो बुद्ध हुआ, वह ब्राह्मण है।
१६) जो बिना दूषित चित्त किए गाली, वध और बन्धन को सहन करता है, क्षमा बल ही जिसके बल और सेनापति है, वही ब्राह्मण है।
१७) जो क्रोध न करने वाला , व्रती, शीलवान, अनुत्सुक, संयमी और अंतिम शरीरवाला है।
१८) कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की भाँति जो भोगों से लिप्त नहीं होता, वही ब्राह्मण है।
१९) जो यहीं अपने दुख के विनाश को जान लेता है, जिसने अपने बोझ को उतार फेंका और जो आसक्ति रहित है, वही ब्राह्मण है।
२०) जो गंभीर प्रज्ञावाला, मेधावी, मार्ग अमार्ग का ज्ञाता, उत्तम अर्थ निर्वाण को पाये हैं, वह ब्राह्मण है।
२१) गृहस्थ और बेघर वाले दोनों ही से जो संसर्ग नहीं रखता है, जो बिना ठिकाने के घूमता तथा अल्पेच्छ है, वही ब्राह्मण है।
२२) जो चर अचर सभी प्राणियों में प्रहार विरत हो, जो न मारता है और न मारने की प्रेरणा करता है, वह ब्राह्मण है।
२३) जो विरोधियों के विरोध रहित है, जो दण्डधारियों के बीच दण्ड से निवृत और संग्रह करने वालों के बीच जो संग्रह रहित है, वह ब्राह्मण है।
२४) आरे के ऊपर सरसों के दाने की भाँति, जिसके चित्त से राग, द्वेष, मान, म्रक्ष, फेंक दिये है, वह ब्राह्मण है।
२५) जो ऐसे अकर्कश, सार्थक तथा सत्य वचन को बोले, जिससे कुछ भी पीड़ा न होवे वह ब्राह्मण है।
२६) जो दीर्घ, ह्रस्व, मोटी या पतली, शुभ या अशुभ संसार में बिना दी गई वस्तु को नहीं लेता है वह ब्राह्मण है।
२७) एस लोक और परलोक के विषय में जिसकी तृष्णा-चाह नहीं रह गई है, जो आशारहित और आसक्तिरहित है, वह ब्राह्मण है।
२८) जिसे तृष्णा नहीं है, जो जानकर संशयरहित हो गया है तथा जिसने पैठकर अमृतपद निर्वाण को पा लिया है, वह ब्राह्मण है।
२९) जिसने यहाँ पुण्य और पाप दोनों की आसक्ति को छोड़ दिया है, जो शोक रहित, निर्मल और शुद्ध है, वह ब्राह्मण है।
३०) जो चन्द्रमा की भाँति विमल, शुद्ध, स्वच्छ, निर्मल है तथा जिसकी सभी जन्मों की तृष्णा नष्ट हो गई, वह ब्राह्मण है।
३१) जिसने इस दुर्गम संसार चक्कर में डालने वाले मोह उलटे मार्ग को त्याग दिया है, जो संसार से पारंगत, ध्यानी तथा तर गया है वह ब्राह्मण है।
३२) जो यहाँ भोगों को छोड़, बेघर हो पव्रजित हो गया है, जिसके भोग और जन्म नष्ट हो गए है। वह ब्राह्मण है।
३३) जो यहाँ तृष्णा को छोड़कर गृहविहीन हो प्रव्रजित हुआ है, जिसकी तृष्णा और जन्म नष्ट हो गए है, वह ब्राह्मण है।
३४) जो मानुषी बन्धनों को छोड़, दिव्य बन्धनों को भी छोड़ चुका है, जो सभी बन्धनों से रहित है वह ब्राह्मण है।
३५) जो प्राणियों की मृत्यु और उत्पत्ति को भली प्रकार जानता है, जो आसक्ति रहित सुन्दर गति को प्राप्त है और बुद्ध (ज्ञानी) है, वह ब्राह्मण है।
३५) जिसे पूर्व, पश्चात् और मध्य में कुछ नहीं है, जो अकिंचन और परिग्रह रहित है, वह ब्राह्मण है।
३६) जिसकी तृष्णाएँ शान्त हो गयी है, वह अब निर्भय है, अकंप है, वह ब्राह्मण है।
३७) जो पूर्व जन्म को जानता है, स्वर्ग और अगति को जिसने देख लिया है, जिसका पुनर्जन्म क्षीण हो चुका है, जिसकी प्रज्ञा पूर्ण हो चुकी है, जिसने अपना सब कुछ पूरा कर लिया है, वह ब्राह्मण है।
धम्मपद: वग्ग २६
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